1 दिसंबर 2009

१७-अब न जाने खील-सा

अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!

गाँव का वह नीम टेढ़ा
याद आता है
पेड़ पीपल का अभी भी
छटपटाता है
बाग में चलते रहँट का
स्वर अनोखा-सा
खो गया जाने कहाँ
पर झनझनाता है।
रोशनी की फिर नुमायश
हो रही घर द्वार सबके

पर न जाने क्यों नहीं मन से गई भटकन।
अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!

माँ बताशा खील दीपक
घर सभी के भेजती थी
वह अमिट दौलत
अभी तक खर्च करता आ रहा हूँ
रोशनी तो कैद कर ली है
हक़ीक़त है मगर यह
इस शहर की भीड़ में
अब तक सदा तनहा रहा हूँ।
ज्योति का यह पर्व
मन को गुदगुदा पाता नहीं है

प्रश्न रह रह उठ रहा है कौन-सा कारन!
अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!

हम समय की बाँह थामे
चल रहे बस चल रहे हैं
ठीकरों की होड़ में हम
मनुजता को छल रहे हैं
भेड़ियों की भीड़
बस्ती में पनपती जा रही फिर
संदली वन आस्थाओं के
निरंतर जल रहे हैं।
है समय का फेर
या अँधेर चाहे जो समझ लो

नाश होता है हमेशा वक्त का रावन!
अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!

-डॉ. जगदीश व्योम

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना के लिए साधुवाद स्वीकार करें।

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  2. अच्छा गीत तो मुखडा पढते ही मन को बांध लेता है. मुखडा पढते ही नीचे पहुंच गया देखने कि कवि कौन है. वाह आनन्द आ गया. आदरणीया पूर्णिमा जी के बाद आपका इतना अच्छा गीत पढने को मिला. दुख है कि मैं भाग नहीं ले पा रहा.

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  3. संदली वन आस्थाओं के
    निरंतर जल रहे हैं।....man ko chhune wala prateek...
    kheel ke khilne ko khushi se jodna aur khastaur par choclatee yug me yaad karna aanandit kar gaya

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  4. "अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!"
    इतने दिनों बाद पाठशाला पे आयी तो सत्य में यही पंक्ति थी जिसने बिना कुछ कहे लौटने ना दिया.
    फ़िर नीचे कवि का नाम देखा तो समझ आया कि क्यों गुरुजन गुरुजन होते हैं.
    आदरणीय व्योम जी बहुत ही मनभावन नवगीत!
    "गाँव का वह नीम टेढ़ा
    याद आता है
    पेड़ पीपल का अभी भी
    छटपटाता है
    बाग में चलते रहँट का
    स्वर अनोखा-सा
    खो गया जाने कहाँ
    पर झनझनाता है।"
    ....
    पर न जाने क्यों नहीं मन से गई भटकन।
    अब न जाने खील-सा खिलता नहीं क्यों मन!
    ...
    माँ बताशा खील दीपक
    घर सभी के भेजती थी
    वह अमिट दौलत
    अभी तक खर्च करता आ रहा हूँ ...

    ये सब हृदयग्राही! बहुत धन्यावाद आपका ये बिम्ब जीवित रखने के लिए!
    सादर...शार्दुला

    जवाब देंहटाएं
  5. Dr Jagdish vyom ki vyatha "ab na jane khil- sa khilta nahi kyon man " manviy samvedanao se sarokar rakhanevalon ka vyatha geet hai.vedna ki us abhivyakti ko mai sht shat pranam karata hun.

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