11 अक्तूबर 2011

१५. धूप आँगने आई

डूबा था इकतारा
मन में
जाने कब से
चाह रहा था
खुलना-खिलना
अपने रब से
दी झनकार सुनाई

खुलीं खिड़कियाँ
दरवाज़े
जागे परकोटे
चिड़ियाँ छोटीं
तोते मोटे
मिलकर लोटे
नया सवेरा लाई

महकीं गलियाँ
चहकीं सड़कें
गाजे-बाजे
लोग घरों से
आए बाहर
बनकर राजे
गूँजी फिर शहनाई

--अवनीश सिंह चौहान
(मुरादाबाद)

6 टिप्‍पणियां:

  1. खुलीं खिड़कियाँ
    दरवाज़े
    जागे परकोटे
    चिड़ियाँ छोटीं
    तोते मोटे
    मिलकर लोटे
    वाह क्या धूप खिली है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. नवीन छंद से सुसज्जित इस नवगीत के लिए अवनीश जी को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. महकीं गलियां
    चहकी सड़कें
    गाजे बाजे
    इया सुंदर गीत के लिए अवनीश जी ...आपको बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. डूबा था इकतारा
    मन में
    जाने कब से
    चाह रहा था
    खुलना-खिलना
    अपने रब से
    दी झनकार सुनाई

    दर्शन से संसार की और उन्मुख हटी यह गीति रचना मन को भी. बधाई.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।