tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post1752561029387827858..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: १६. पलाश-गीतनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-15720410807390008492011-06-25T07:20:13.598+04:002011-06-25T07:20:13.598+04:00वाह.. वाह... बहुत खूब.वाह.. वाह... बहुत खूब.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-38755766996153972632011-06-23T23:55:26.254+04:002011-06-23T23:55:26.254+04:00निर्धन की आँखों में
टेसू सा सपना है
दहक रहे सूरज स...निर्धन की आँखों में<br />टेसू सा सपना है<br />दहक रहे सूरज से<br />उपवन का दहना है<br />डालों पर अंगारे<br />आँखों में सूरज है<br />जेठ के अंधड़ में<br />सपने सब खो गये ।<br /> सुन्दर सुन्दर बहुत ही सुंदर.<br />saader<br />rachanaRachanahttps://www.blogger.com/profile/15249225250149760362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-24956486580872221892011-06-19T15:24:27.935+04:002011-06-19T15:24:27.935+04:00बहुत ही सुंदर.
हमने इस गीत-नवगीत से बहुत कुछ सीख...बहुत ही सुंदर.<br /><br />हमने इस गीत-नवगीत से बहुत कुछ सीखना है.sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-55002587338367530872011-06-19T10:18:23.559+04:002011-06-19T10:18:23.559+04:00डा० जीवन शुक्ल बहुत वरिष्ठ नवगीतकार हैं। नवगीत की ...डा० जीवन शुक्ल बहुत वरिष्ठ नवगीतकार हैं। नवगीत की पाठशाला पर आपकी नवगीतों सहित उपस्थिति नवगीतकारों के लिए उत्सव के समान उल्लसित कर देने जैसा है, यदि आप पाठशाला पर नियमित आते रहें तो निश्चय ही हमारे प्रयास को चार चाँद लगेंगे। इस नवगीत की बहुत सारी विशेषताएँ उभर कर सामने आ रही हैं जैसे - <br />" ढाक के तीन पात " मुहावरे का सटीक प्रयोग नवगीत के प्रारम्भ में ही होता है, ढाक सर्वहारा वर्ग का प्रतीक भी है इसका बहुत अच्छा निर्वाह हुआ है। <br /><br />" ढाक के तीन पात थे<br />वो भी अब खो गये<br />पसई के चाउर से<br />सपने हम बो गये । "<br /><br />शहरों के विस्तार के चलते जंगलों का विनाश एक त्रासदी है --<br />" जंगल का बिरवा था<br />बस्ती ने खा लिया <br />आग को पानी की<br />मस्ती ने पा लिया<br />उजड़े वीराने तो<br />शहरों के वंश बढ़े "<br /><br />" टेसू का एक खेल भी खेला जाता है गाँवों में, वह बहुत सारे सपने देखता है पर पूरे शायद ही कभी होते हों----<br /><br />"निर्धन की आँखों में<br />टेसू सा सपना है<br />दहक रहे सूरज से<br />उपवन का दहना है"<br /><br />ढाक या पलाश के फूलों का रंग, रूप और ग्रीष्म की तेज धूप में खिलने विषयक चित्रण बहुत सटीक शब्दावली में किया गया है।<br />" लाल से अधरों पर<br />पीली सी वंशी है<br />ढाक की गोद में<br />किरनों का अंशी है "<br /><br />कथ्य और शिल्प की दृष्टि से डा० जीवन शुक्ल जी का यह नवगीत बहुत सुन्दर और भाव प्रवण नवगीत है। डॅा. व्योमhttps://www.blogger.com/profile/10667912738409199754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-24864809486078220452011-06-19T08:17:57.343+04:002011-06-19T08:17:57.343+04:00बहुत ही सुंदर नवगीत है। जीवन जी को बहुत बहुत बधाई।...बहुत ही सुंदर नवगीत है। जीवन जी को बहुत बहुत बधाई।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com