tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post1754338843798433086..comments2023-11-02T11:46:29.500+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: १०- आए कैसे बसंत? : रावेंद्रकुमार रविनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-36117296534379355252010-03-16T22:37:30.014+04:002010-03-16T22:37:30.014+04:00हमें यह चिंतन करना ही होगा कि जीवन में सिर्फ लालच ...हमें यह चिंतन करना ही होगा कि जीवन में सिर्फ लालच और स्वार्थ को इतना महत्व न दें कि प्रदूषण से घायल प्रकृति को देखकर व्यथित हुए रचनाकार को ऐसा नवगीत रचना पड़े। <br />आइए यह प्रण लें कि आज से प्रकृति के प्रति कुछ ऐसा करने का कि रचनाकार गीत रचे तो बसंत के स्वागत का और महकते प्रेम के माधुर्य का।अरविंद राजhttps://www.blogger.com/profile/03325104487579205206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-56938187850375417372010-03-12T22:21:37.095+04:002010-03-12T22:21:37.095+04:00Bahut Sundar va shreshtha srijan hai...pad kar man...Bahut Sundar va shreshtha srijan hai...pad kar man pulakit ho gaya aapane bilkul sahi kaha tha , bahut accha laga pad kar dhanyawaad!!रानीविशालhttps://www.blogger.com/profile/15749142711338297531noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-20255377445746265132010-03-10T21:37:02.430+04:002010-03-10T21:37:02.430+04:00आपका नवगीत पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई । पर्यावरण के प्रत...आपका नवगीत पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई । पर्यावरण के प्रति आपके इस चिंतन में मैं आपके साथ हूँ । ईश्वर सबके मन में ऐसी ही भावनाएँ विकसित करे ।डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरीhttps://www.blogger.com/profile/05847846072338256614noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-71924718200798503042010-03-08T23:07:57.889+04:002010-03-08T23:07:57.889+04:00धन्यवाद, शरद जी!
बहुत अच्छे कमेंट के लिए आभार!
आ...<b>धन्यवाद, शरद जी! <br />बहुत अच्छे कमेंट के लिए आभार! <br />आपके सुझाव पर पूरा ध्यान दूँगा!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-26103212265674849852010-03-08T22:47:30.960+04:002010-03-08T22:47:30.960+04:00नवगीत के शिल्प का पूरी तरह निर्वाह करता हुआ यह बहु...नवगीत के शिल्प का पूरी तरह निर्वाह करता हुआ यह बहुत सुन्दर नवगीत है । बसंत के स्वागत की सदैव से परम्परा रही है लेकिन समय के अनुसार अब उसके अर्थ बदल गये हैं और इसमे पर्यावरण की चिंता भी शामिल हो गई है । इतने छन्द पर्याप्त हैं फिरभी मुझे लगता है कि रवानी के लिये कथ्य को कुछ और विस्तार दिया जा सकता था ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-38082965900470918692010-03-04T18:18:07.103+04:002010-03-04T18:18:07.103+04:00कचरे से पाट रहे
ख़ुशियों को डाँट रहे!
ये बात दिल क...कचरे से पाट रहे<br />ख़ुशियों को डाँट रहे!<br />ये बात दिल को लगती है।प्रेम सागर सिंह [Prem Sagar Singh]https://www.blogger.com/profile/04752730187804179048noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-72197078348396748632010-03-04T17:59:06.067+04:002010-03-04T17:59:06.067+04:00"भाई, तुम्हारे अन्दर यह गीतकार कहाँ छुपा था ?...<b>"भाई, तुम्हारे अन्दर यह गीतकार कहाँ छुपा था ? <br />अनुभूति, संवेदना एवं सौन्दर्य-बोध तो <br />पहले से था ही, <br />पर अभिव्यक्ति की सुघड़ता निस्सन्देह <br />आश्चर्यजनक व प्रसंशनीय है । सुखद भी ।" <br />-- <br />गिरिजा दीदी! <br />आपके मेल से मिले इस आशीष को <br />सबके साथ बाँटने का मन किया! <br />-- <br />आपकी टिप्पणी ने मुझे <br />आपसे यह अनुरोध करने के लिए <br />प्रेरित किया है कि "नवगीत की पाठशाला" की <br />आगामी कार्यशालाओं में प्रतिभाग कर <br />आप भी अभिनव नवगीतों का सृजन करें!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-22458838789974116032010-03-04T17:47:10.872+04:002010-03-04T17:47:10.872+04:00शारदा जी,
आपके द्वारा दी गई जानकारी
निसंदेह प्रे...<b>शारदा जी, <br />आपके द्वारा दी गई जानकारी <br />निसंदेह प्रेरणा की ज्योति जगाएगी <br />और जागरूकता की एरोमा <br />सकल विश्व में फैलाएगी! <br />शुभकामना है कि <br />आचार्य सलिल जी की इच्छा फले-फूले!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-64016163173246304582010-03-03T14:10:16.973+04:002010-03-03T14:10:16.973+04:00श्रीमान सलिलजी,
समस्या का मूल कारण है जनसंख्या की ...श्रीमान सलिलजी,<br />समस्या का मूल कारण है जनसंख्या की अति है. सीमित जनसंख्या समस्त समस्याओं को निपटाने में सक्षम हुई है.sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-87067149691326818042010-03-03T08:53:54.711+04:002010-03-03T08:53:54.711+04:00नवगीत के कथ्य ने शिल्प पर वरीयता पाकर इसे पठनीय के...नवगीत के कथ्य ने शिल्प पर वरीयता पाकर इसे पठनीय के साथ-साथ माननीय भी बना दिया है. मनन के बाद कर्म करना हम भारतीयों का स्वभाव तो नहीं है पर आशा करें की न्यूजीलैंड की तरह यहाँ भी....Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-48064369423648921572010-03-02T15:10:14.099+04:002010-03-02T15:10:14.099+04:00"aae kaise vasant" paryavaran bodh se la..."aae kaise vasant" paryavaran bodh se labrej ek anuthi rachna hai,Raviji is janchetna ke lie badhaeemandalsshttps://www.blogger.com/profile/18435280180094938316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-5287499234009670852010-02-28T23:16:15.251+04:002010-02-28T23:16:15.251+04:00कभी मैंने भी लिखा था--
चिडिया बैठी तार पर,मन में ल...कभी मैंने भी लिखा था--<br />चिडिया बैठी तार पर,मन में लिये मलाल ।<br />कंकरीट के शहर में ,दिखे न कोई डाल ।-<br />यह बात यों और भी खूबसूरत है---<br />घोंसला बनाने को कैसे वे आएंगे....।गीत निस्सन्देह अच्छा है ।<br /><br />रवि, आपके गीतो को पढ रही हूँ ।यह गीतकार अबतक कहाँ छुपा था भाई ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-65886503481340917482010-02-28T07:38:53.680+04:002010-02-28T07:38:53.680+04:00रविजी,
यह सत्य है कि अनावश्यक जन-वृद्धी हेतु, पशुप...रविजी,<br />यह सत्य है कि अनावश्यक जन-वृद्धी हेतु, पशुपालन/ आवास/ कारखाने/ कृषि उत्पादन/ ईंधन तथा अनेक अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, न केवल न्यूज़ीलैंड बल्कि विश्व के लगभग सभी देशों में वन्य प्रदेशों को काट कर साफ़ किया गया था. <br />परन्तु न्यूज़ीलैंड ने तो अपनी भूल सुधार कर स्थिति पर नियंत्रण पा लिया है. यहाँ सामूहिक रूप में वन रोपण के प्रोग्राम किये गाए और सम्प्रति भी इस तरह के कार्यक्रम अनिवार्य रूप से किये जा रहें हैं. फलस्वरूप घने जंगलों का प्रतिरोपण हो गया है.<br />सप्रेम,<br />शारदाsharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-22499525894202194912010-02-27T18:03:27.905+04:002010-02-27T18:03:27.905+04:00रावेन्द्र कुमार जी,
सचमुच जब मन कुंठाओं से भरा होग...रावेन्द्र कुमार जी,<br />सचमुच जब मन कुंठाओं से भरा होगा तो द्वारे पर खड़ा वसन्त भी मन के घर में प्रवेश करने में संकोच करेगा । वसन्त का उल्लास तो आँखों के झरोंखों से ही तो मन में जाएगा लेकिन द्वार तो खुला हो?<br />प्रकॄति तथा मानसिक चिन्तन को शब्दों में पिरोता हुआ आपका नवगीत बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद तथा बधाई ।<br />शशि पाधाशशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-3835107525675356702010-02-27T11:16:38.169+04:002010-02-27T11:16:38.169+04:00सपनों का इंद्रधनुष
पाए कैसे दिगंत?
मन-कुंठा फूल रह...सपनों का इंद्रधनुष<br />पाए कैसे दिगंत?<br />मन-कुंठा फूल रही<br />भाए कैसे बसंत?<br />आए कैसे बसंत?<br />बहुत सुन्दर गीत । बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-12154771941932972312010-02-26T16:10:39.098+04:002010-02-26T16:10:39.098+04:00सपनों का इंद्रधनुष
पाए कैसे दिगंत?
मन-कुंठा फूल रह...सपनों का इंद्रधनुष<br />पाए कैसे दिगंत?<br />मन-कुंठा फूल रही<br />भाए कैसे बसंत?<br />आए कैसे बसंत?<br /><br />-इस नवगीत के माध्यम से आपने एक बहुत उम्दा संदेश भी दिया है. इस तरह के गीत ही सार्थक गीत कहलाते है. अनेक बधाईयाँ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-68761937825182183192010-02-26T14:35:26.989+04:002010-02-26T14:35:26.989+04:00AApne aaj ki sachchai ko bahut hi alag dhang se ap...AApne aaj ki sachchai ko bahut hi alag dhang se apne shabdo se ukera hai.<br />Hum ente byast ho gaye hai ki hum apni prakati ke bare me sochne ka time hi nahi nikal pate or jab kabhi kuchh chhan milte hai to es barbadi ke liye ek dusre par aarop madte rahte hai.<br /><br />thanks alot ..VedPrakash Singhhttps://www.blogger.com/profile/14145473771711433662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-63082303250524837572010-02-25T22:57:47.010+04:002010-02-25T22:57:47.010+04:00पर्यावरण / प्रकृति चिन्तन करती सुन्दर रचना । अगर ...पर्यावरण / प्रकृति चिन्तन करती सुन्दर रचना । अगर ऐसा हीं चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम वसंत देखने को तरस जायेगे । इतनी अच्छी नवगीत लखने के लिये बधाई ।Chandan Kumar Jhahttps://www.blogger.com/profile/11389708339225697162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-50054613514475108682010-02-25T22:15:05.925+04:002010-02-25T22:15:05.925+04:00बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-5904828378050254622010-02-25T21:13:43.785+04:002010-02-25T21:13:43.785+04:00"लीक से हटकर पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या को ..."लीक से हटकर पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या को पुरजोर तरीके से शाब्दांकित करने हेतु साधुवाद." <br />-- <br />यह बात तो केवल आचार्य संजीव सलिल जी ही कह सकते हैं!रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-4246406909137497642010-02-25T20:03:51.997+04:002010-02-25T20:03:51.997+04:00सच है बहुत अच्छी रचना है ,गीत पसंद ही नही बहुत पसं...सच है बहुत अच्छी रचना है ,गीत पसंद ही नही बहुत पसंद आया क्योंकि इसमें बहुत अहम बाते कही गयी है <br />रोज़-रोज़ काट रहे<br />हर टहनी छाँट रहे!<br />घोंसला बनाने को<br />कैसे वे आएँगे?<br />सुन उनका कल-कूजन<br />क्या अब अँखुआएँगज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-83190486619060085242010-02-25T19:45:24.701+04:002010-02-25T19:45:24.701+04:00"पल पल रंग बदलती ऋतुएँ
बिन बोले आ जाएँगी,
तुम...<b>"पल पल रंग बदलती ऋतुएँ<br />बिन बोले आ जाएँगी,<br />तुम चाहो ना चाहो फिर भी<br />रंग नए दिखलाएँगीं!" <br />-- <br />गीता जी, <br />बहुत-बहुत आभारी हूँ! <br />आपकी इन पंक्तियों ने मेरे इस नवगीत को <br />गौरान्वित कर दिया!</b> <br />-- <br />ऐसे ही भाव <br />उद्वेलित करना <br />इस <b>नवगीत का उद्देश्य</b> है!रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-51839100752350941252010-02-25T19:38:40.875+04:002010-02-25T19:38:40.875+04:00शारदा जी!
आपका कमेंट पढ़कर याद आया!
कहीं पढ़ा था ...<b>शारदा जी! <br />आपका कमेंट पढ़कर याद आया!<br />कहीं पढ़ा था - <br />पशुपालन के लिए <br />न्यूज़ीलैंड के बड़े-बड़े जंगलों को <br />काट-काटकर चरागाह बना दिए गए? <br />जिसके दुष्परिणाम अब दृष्टिगोचर हो रहे हैं! <br />क्या आप इस बात की <br />सच्चाई के बारे में <br />यहाँ कुछ बता सकती हैं?</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-4849326355408486092010-02-25T17:07:35.341+04:002010-02-25T17:07:35.341+04:00रोज़-रोज़ काट रहे
हर टहनी छाँट रहे!
घोंसला बनाने क...रोज़-रोज़ काट रहे<br />हर टहनी छाँट रहे!<br />घोंसला बनाने को<br />कैसे वे आएँगे?<br />सुन उनका कल-कूजन<br />क्या अब अँखुआएँग<br /><br />पर्यावरण पर चिंतन भाव उद्वेलित कर गया.....सुंदर रचना......रवि जी बधाई....<br /><br /><br />पल पल रंग बदलती रितुएँ<br />बिन बोले आ जायेंगी,<br />तुम चाहो ना चाहो फिर भी<br />रंग नये दिखलायेंगीं ॥<br /><br />गीता पंडितगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-35510073489892731762010-02-25T10:02:59.233+04:002010-02-25T10:02:59.233+04:00बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
रविजी,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई <br /><br />रविजी,sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.com