tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post3162718666499895110..comments2023-11-02T11:46:29.500+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ७- सच्चाई की सड़क परनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-63589516008326843712010-01-19T17:43:45.825+04:002010-01-19T17:43:45.825+04:00सच्चाई की सड़क पर,
है झूठ का कुहासा।
आज की सच्चाई ...सच्चाई की सड़क पर,<br />है झूठ का कुहासा।<br /><br />आज की सच्चाई का सच्चा दर्शन गीत के माध्यम से...बहुत अच्छा लगा...<br /><br />दीपिका जोशी'संध्या'दीपिका जोशी 'संध्या'https://www.blogger.com/profile/12808052661092589035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-80600239508089537402010-01-12T19:53:50.788+04:002010-01-12T19:53:50.788+04:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-1008357629826098942010-01-12T19:45:57.451+04:002010-01-12T19:45:57.451+04:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-85386321012927631732010-01-11T21:57:20.467+04:002010-01-11T21:57:20.467+04:00धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह क...धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह कहें तो बहुत सुन्दर होगा यह नवगीत।<br />सत्य की सड़क पर है,<br /> झूठ का कुहासा<br />छटने की आशा ,,,,,<br />स्वार्थों की ठंढ बढी<br />ठिठुराती हर-पल,<br />परहित का ताप सुप्त<br />ओढ़े सुख कम्बल;<br />सब उपले प्रेम के<br /> दे रहे धुँआ-सा।कटारेhttps://www.blogger.com/profile/15644985829200000634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-1779735428972482372010-01-11T18:18:55.604+04:002010-01-11T18:18:55.604+04:00धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह क...धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह कहें तो बहुत सुन्दर होगा यह नवगीत।<br />सत्य की सड़क पर है,<br /> झूठ का कुहासा<br />छटने की आशा ,,,,,<br />स्वार्थों की ठंढ बढी<br />ठिठुराती हर-पल,<br />परहित का ताप सुप्त<br />ओढ़े सुख कम्बल;<br />सब उपले प्रेम के<br /> दे रहे धुँआ-सा।कटारेhttps://www.blogger.com/profile/15644985829200000634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-59796394073304893352010-01-11T17:24:41.664+04:002010-01-11T17:24:41.664+04:00पछुआ हवा ने पाला
ऐसा गिराया सबपर,
रिश्तों के खेत स...पछुआ हवा ने पाला<br />ऐसा गिराया सबपर,<br />रिश्तों के खेत सारे<br />अब हो गये हैं बंजर;<br />आयेंगी गर्मियाँ फिर,<br />है व्यर्थ अब ये आशा।<br /><br />एक कड़ुवा सत्य हैं यह पंक्त्तियाँ । बहुत सार गर्भित रचना। धन्यवाद।<br /><br />शशि पाधाशशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-82223551115813725152010-01-09T22:02:37.362+04:002010-01-09T22:02:37.362+04:00एक और अच्छा नवगीत प्रकाशित हुआ है - इस ब्लॉग पर!
...एक और अच्छा नवगीत प्रकाशित हुआ है - इस ब्लॉग पर!<br /><br /><a href="http://saraspaayas.blogspot.com/2010/01/blog-post_03.html" rel="nofollow">ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती</a>, <a href="http://saraspaayas.blogspot.com/2010/01/blog-post_09.html" rel="nofollow">रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!</a><br /><a href="http://rachanakar.blogspot.com/2008/12/blog-post_11.html" rel="nofollow">नए वर्ष की नई सुबह में</a>, <a href="http://saraspaayas.blogspot.com/2010/01/blog-post.html" rel="nofollow">महके हृदय तुम्हारा!</a><br /><a href="http://hindeekaashringaar.blogspot.com/2010/01/blog-post_04.html" rel="nofollow">संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ"</a>, <a href="http://hindeekaashringaar.blogspot.com/2010/01/2.html" rel="nofollow">उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?</a><br /><a href="http://saraspaayas.blogspot.com/2009/12/blog-post_27.html" rel="nofollow">संपादक : "सरस पायस"</a>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-5760883477899077492010-01-09T16:33:35.000+04:002010-01-09T16:33:35.000+04:00घुट रहा धर्म दबकर
पाखंड की बरफ से,
तिस पर सियासतों...घुट रहा धर्म दबकर<br />पाखंड की बरफ से,<br />तिस पर सियासतों की<br />आँधियाँ हर तरफ से;<br />कुहरा बढ़ा रही है,<br />नफरत की कर्मनाशा।...<br /><br />बढ़ती ही जा रही है,<br />अच्छाई की हताशा।<br />:-<br />true.यतार्थ चित्रण !sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-67924524746813794922010-01-09T14:44:44.699+04:002010-01-09T14:44:44.699+04:00नवगीत की दृष्टि से हो सकता है कि कुछ कमियाँ यहाँ व...नवगीत की दृष्टि से हो सकता है कि कुछ कमियाँ यहाँ वहाँ रह गयी हों लेकिन ये पंक्तियाँ बेमिसाल हैं-पछुआ हवा ने पाला<br />ऐसा गिराया सबपर,<br />रिश्तों के खेत सारे<br />अब हो गये हैं बंजर;<br />आयेंगी गर्मियाँ फिर,<br />है व्यर्थ अब ये आशा।suruchihttps://www.blogger.com/profile/17510455285961103373noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-50436001282878808492010-01-08T23:14:44.014+04:002010-01-08T23:14:44.014+04:00इस रचना ने मन मोह लिया।इस रचना ने मन मोह लिया।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com