tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post3342983883081978971..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: २७- अब बसन्त आया है : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"नवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-6341512498703936412010-03-21T02:32:42.506+04:002010-03-21T02:32:42.506+04:00वसन्त का सुन्दर वर्णन करती हुई एक मनभावन रचना है आ...वसन्त का सुन्दर वर्णन करती हुई एक मनभावन रचना है आपकी । धन्यवाद ।<br /><br />शशि पाधाशशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-75294313763651827502010-03-18T21:33:58.756+04:002010-03-18T21:33:58.756+04:00वर्णनात्मकता कुछ अधिक प्रतीत हुई. आनुभूतिक सघनता क...वर्णनात्मकता कुछ अधिक प्रतीत हुई. आनुभूतिक सघनता की आप जैसे श्रेष्ठ रचनाकार से अपेक्षा होती है. रचना रुची.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-60961608078138714792010-03-17T17:23:13.628+04:002010-03-17T17:23:13.628+04:00नवगीत के हर पद ने
चित्र नया दिखाया है!
उपवन के स...<b>नवगीत के हर पद ने <br />चित्र नया दिखाया है! <br />उपवन के साथ-साथ <br />मन भी मुस्काया है! <br />मन को जो भाया है,<br />सचमुच वसंत आया है! <br />-- <br />बहुत मनभावन नवगीत!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-78969584957910895042010-03-15T19:13:23.895+04:002010-03-15T19:13:23.895+04:00कुहासे की चादर,
धरा से छँट गई।
फैली हुई धवल रुई,
ग...कुहासे की चादर,<br />धरा से छँट गई।<br />फैली हुई धवल रुई,<br />गगन से हट गई।<br />उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है!<br /><br /><br />...<br /><br /><br /><br />ji han...बसन्त आया है<br /><br />bahut sundar....abharगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-33685509362580479812010-03-15T09:25:31.090+04:002010-03-15T09:25:31.090+04:00उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
कुहासे की चा...उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है! <br /><br /><br />कुहासे की चादर,<br />धरा से छँट गई। <br />फैली हुई धवल रुई, <br />गगन से हट गई।<br />उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है! <br /><br /><br />सूर्य की <br />रश्मियों से, <br />दिवस प्रकाशित हैं। <br />वासन्ती सुमनों से , <br />तन-मन सुवासित हैं।<br />उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है!<br /><br />jate hue bahar kee phurar itnini madak hogi iska to andaja hi nahi tha "Mayankji" lekin apne ahsas kara hi diya badhaaee ho.mandalsshttps://www.blogger.com/profile/18435280180094938316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-612941142086729812010-03-15T07:09:08.506+04:002010-03-15T07:09:08.506+04:00गुनगुनी धूप ने,
मोर्चे सम्भाले हैं।
पर्वत भी छोड़ ...गुनगुनी धूप ने,<br />मोर्चे सम्भाले हैं।<br />पर्वत भी छोड़ रहे,<br />बर्फ के दुशाले हैं।<br />उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है! <br /><br />बसंत का सुन्दर चित्रण, बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद,<br />विमल कुमार हेडाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-32763691858756359602010-03-14T21:30:13.638+04:002010-03-14T21:30:13.638+04:00उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
उपवन यूँ हीं...उपवन मुस्काया है!<br />अब बसन्त आया है! <br /><br /><br />उपवन यूँ हीं मुस्काता रहे<br />यूँ हीं वसंत आता रहे ।<br /><br />बहुत हीं सुन्दर रचना । आभारChandan Kumar Jhahttps://www.blogger.com/profile/11389708339225697162noreply@blogger.com