tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post5135975798118087262..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: १७. भरी भीड़ में एकाकी हमनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-70198079128285084212011-08-31T03:51:25.781+04:002011-08-31T03:51:25.781+04:00थके-थके से देखे हमने
जीवन के साये
संवादों में उगे ...थके-थके से देखे हमने<br />जीवन के साये<br />संवादों में उगे अचानक<br />संशय औ॔ अवसाद<br /><br />कटु यथार्थ... प्रभावी नवगीत. बधाई.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-46554597403565556532011-08-30T17:41:02.089+04:002011-08-30T17:41:02.089+04:00शानदार प्रस्तुति बहुत सुंदर नवगीत है अश्वघोष जी को...शानदार प्रस्तुति बहुत सुंदर नवगीत है अश्वघोष जी को उनके बहुत सुन्दर नवगीत के लिये वधाई।Dr. Himani bansalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-59291472353591922082011-08-30T15:27:53.188+04:002011-08-30T15:27:53.188+04:00too good verryyyyyyyy nice sirtoo good verryyyyyyyy nice sirAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-47892792918217551942011-08-30T09:37:25.310+04:002011-08-30T09:37:25.310+04:00एक टिटहरी पढ़ती जाती
अधकचरा अनुवाद
खोज रहे हैं दा...एक टिटहरी पढ़ती जाती<br />अधकचरा अनुवाद<br /><br />खोज रहे हैं दायें-बायें<br />रिश्तों की बुनियाद<br />.............टिटहरी का पढ़ना बहुत पसंद आया..<br /><br />बहुत सुंदर...<br />आभार आपका...गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-89473680999596863942011-08-30T08:25:48.826+04:002011-08-30T08:25:48.826+04:00" जंगल भर में गहमागहमी
भाषा की हलचल
बंदर की म..." जंगल भर में गहमागहमी<br />भाषा की हलचल<br />बंदर की मानिंद कर रहे<br />सब की सभी नकल "<br /><br />महानगरीय जीवन की बहुत यथार्थमयी अभिव्यक्ति अश्वघोष जी के इस नवगीत में हुई है। मौलिक चिंतन की उपेक्षा कर प्रतिस्पर्धात्मक नकल की बढ़ती अतिशय प्रवृत्ति पर नवगीत में सार्थक टिप्पणी की गई है।<br />अश्वघोष जी का "भरी भीड़ में" शीर्षक यह नवगीत वर्ष 2006 में उनके नवगीत संग्रह "गई सदी के स्पर्श" में प्रकाशित हो चुका है।<br />अश्वघोष जी को उनके बहुत सुन्दर नवगीत के लिये वधाई।डा० व्योमhttp://www.navgeet.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-62775350498630519112011-08-30T07:45:35.076+04:002011-08-30T07:45:35.076+04:00डॉ. अश्वघोष के इस गीत में महानगर में 'रिश्तों ...डॉ. अश्वघोष के इस गीत में महानगर में 'रिश्तों की बुनियाद' के ही बिला जाने की आज के संवेदनशील व्यक्ति की जो चिंता है, उसका आकलन बड़े ही सटीक रूप में हो पाया है| उस बुनियाद की खोज करना आज बेहद ज़रूरी हो गया है|<br />भाई अश्वघोष जी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इस दो पदों के श्रेष्ठ गीत के लिए|kumar ravindrahttp://navgeetpathshala.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-91992716517791490842011-08-30T05:29:46.310+04:002011-08-30T05:29:46.310+04:00बूढ़े अनुभव जंग लगे-से
काम नहीं आये
थके-थके से देख...बूढ़े अनुभव जंग लगे-से<br />काम नहीं आये<br />थके-थके से देखे हमने<br />जीवन के साये<br />संवादों में उगे अचानक<br />संशय औ॔ अवसाद<br /><br />शानदार प्रस्तुतिVandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-9498013313425862222011-08-29T22:43:34.518+04:002011-08-29T22:43:34.518+04:00बहुत सुंदर नवगीत है ये अश्वघोष जी का। बहुत बहुत बध...बहुत सुंदर नवगीत है ये अश्वघोष जी का। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार नवगीत के लिए।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com