tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post6582577692361841319..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: १- भोर खड़ी दरवाजे परनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-47928522572682877662010-01-13T16:54:29.184+04:002010-01-13T16:54:29.184+04:00बढ़िया नवगीत! लगता है पाठशाला को एक नया नवगीतकार म...बढ़िया नवगीत! लगता है पाठशाला को एक नया नवगीतकार मिल गया है।suruchihttps://www.blogger.com/profile/17510455285961103373noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-64308563087530452792010-01-06T05:53:26.825+04:002010-01-06T05:53:26.825+04:00ab tak prakashit geeto me se sabse achchha lagaab tak prakashit geeto me se sabse achchha lagavandananoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-12587608453300208312010-01-03T14:58:24.475+04:002010-01-03T14:58:24.475+04:00नियति जी ! बहुत सुन्दर पक्तियाँ हैं नवगीत की। लोक ...नियति जी ! बहुत सुन्दर पक्तियाँ हैं नवगीत की। लोक तत्त्व नवगीत के लिए उसका प्राण है.... आप ने इसका सटीक और प्रवाहमयी प्रयोग किया है......छन्द का भी अच्छा निर्वाह हुआ है.....आपसे और अच्छे नवगीतों की अपेक्षा रहेगी भविष्य में-<br />" नानी माँ के तिल के लड्डू. नुक्कड़ की वो गरम जलेबी <br />गन्ने का रस गुड की ढेली, भली लगे अमृत फल से भी <br />देर शाम तक पुरवाई में तफरी के दिन गए गुजर <br />कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर...." डॅा. व्योमhttps://www.blogger.com/profile/10667912738409199754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-62952686957698603332010-01-03T14:54:27.812+04:002010-01-03T14:54:27.812+04:00नियति जी ! बहुत सुन्दर पक्तियाँ हैं नवगीत की। लोक ...नियति जी ! बहुत सुन्दर पक्तियाँ हैं नवगीत की। लोक तत्त्व नवगीत के लिए उसका प्राण है.... आप ने इसका सटीक और प्रवाहमयी प्रयोग किया है......छन्द का भी अच्छा निर्वाह हुआ है.....आपसे और अच्छे नवगीतों की अपेक्षा रहेगी भविष्य में-<br />" नानी माँ के तिल के लड्डू. नुक्कड़ की वो गरम जलेबी <br />गन्ने का रस गुड की ढेली, भली लगे अमृत फल से भी <br />देर शाम तक पुरवाई में तफरी के दिन गए गुजर <br />कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर...." डॅा. व्योमhttps://www.blogger.com/profile/10667912738409199754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-81548186222815982222010-01-02T10:25:48.812+04:002010-01-02T10:25:48.812+04:00मेरी इस टिप्पणी से
पहले की कुछ टिप्पणियाँ
इस नवग...मेरी इस टिप्पणी से <br />पहले की कुछ टिप्पणियाँ <br />इस नवगीत को <br />ध्यान से पढ़े बिना <br />की गई प्रतीत होती हैं! <br />ऐसा लगता है कि <br />इन टिप्पणीकारों को <br />काव्य की समझ ही नहीं है!<br /><br />क्या बरसात केवल <br />वर्षा ऋतु में ही होती है? <br /><br />अमृत फल का स्वाद जानना <br />क्या सबके वश में है?<br /><br />अरमानों के झूले को <br />अनुभूत करना किसे आता है? <br /><br />अंबर का आनन <br />कौन देख सकता है <br />और कैसी आँखों से? <br /><br />और क्या कहूँ?<br />मुझे तो <br />किसी और के हाथों पर रची मेंहदी <br />किसी और की आँखों में भी <br />दिखाई दे जाती है!रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-18432716838895096642009-12-31T21:26:01.133+04:002009-12-31T21:26:01.133+04:00मैं इस बात से सहमत नहीं कि यह वर्षा ऋतु का वर्णन ह...मैं इस बात से सहमत नहीं कि यह वर्षा ऋतु का वर्णन है। सरसों सर्दियों में ही फूलती है और कोहरा हमेशा बर्फीली जगहों पर ही नहीं होता। हरियाले खेतों पर भी होता है। पंजाब तथा उत्तर भारत के खेतों में ऐसी सुबह कहीं भी मिल जाएगी। रचना सुंदर है सहज है, फिर भी नवगीत के हिसाब से कुछ और नए बिम्बों, नई उपमाओं और नए कथन की गुंजाइश रहती है।<br /><br />मुक्ता पाठकAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-56574748625590325602009-12-31T13:32:34.329+04:002009-12-31T13:32:34.329+04:00"अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फू..."अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले <br />हुलस हुलस कर अम्बर आज, खुद अपने आनन को छूले <br />हौले से मुस्काई धरती, हरियाली की ओढ़ चुनर <br />कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर" <br />This discription is for the raining season and not for the winter when every thing is covered under the sheet ot kohra.sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-52503780168506130422009-12-28T22:55:36.845+04:002009-12-28T22:55:36.845+04:00अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले
हु...अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले <br />हुलस हुलस कर अम्बर आज, खुद अपने आनन को छूले <br />हौले से मुस्काई धरती, हरियाली की ओढ़ चुनर <br />कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर <br />नियति जी, बहुत सुन्दर शब्द चित्रण है, लगता है कोहर में लिपटी भोर कोई नया संदेशा लेकर आई है ।बधाई<br />शशि पाधाशशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-66033136290606835682009-12-28T07:00:50.350+04:002009-12-28T07:00:50.350+04:00नियति जी,
कोहरे की चुनरिया अवश्य रंगहीन रही होगी...नियति जी,<br />कोहरे की चुनरिया अवश्य रंगहीन रही होगी न ! सरसों, अम्बर धरती पर तो श्वेत उदासी रही होगी न! भोर को क्या कोहरे के छटने की चाह नहीं थी?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-29831728084003526512009-12-27T00:10:25.180+04:002009-12-27T00:10:25.180+04:00अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले
हु...अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले <br />हुलस हुलस कर अम्बर आज, खुद अपने आनन को छूले <br />हौले से मुस्काई धरती, हरियाली की ओढ़ चुनर <br />कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर <br /><br /><br />एक बहुत ही खूबसूरत रचना..बहुत ही बढ़िया लिखते है भाई..बधाईविनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-79445694745704785842009-12-26T21:16:50.167+04:002009-12-26T21:16:50.167+04:00सराहनीय प्रयास. यह रचना गीत और नवगीत की सीमावर्ती ...सराहनीय प्रयास. यह रचना गीत और नवगीत की सीमावर्ती है. बिम्ब और प्रतीक अछूते और सहज ग्राह्य हैं.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-40767296734754065552009-12-26T20:01:16.347+04:002009-12-26T20:01:16.347+04:00बिंबों का सुंदर समन्वय!बिंबों का सुंदर समन्वय!रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-60264557979485846782009-12-26T18:32:54.837+04:002009-12-26T18:32:54.837+04:00अति सुंदर। लगता है पूरा शीतकाल आंखों के सामने सजीव...अति सुंदर। लगता है पूरा शीतकाल आंखों के सामने सजीव हो गया हो। आभार इतनी सुंदर प्रस्तुति से 6ठी कार्यशाला का शुभारंभ करने के लिए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com