tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post6725680409300044123..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ३०- आँगन में बासंती धूप : अजय गुप्तनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-83135021614219271812010-03-22T07:15:47.979+04:002010-03-22T07:15:47.979+04:00दिव्य नर्मदा divya narmada said...
प्रकृति, प...दिव्य नर्मदा divya narmada said...<br /><br /> प्रकृति, पुरुष सब पर ही<br /> बिखर गया रँग-अबीर,<br /> मस्ती में डूब चुका<br /> है युग चेता कबीर।<br /> लपटों ने भून लिए नर्म चने के बिरवे,<br /> बौराए आमों की बस्ती पगलाई है।<br /><br /> बहुत अच्छा... जो कमी पिछले कुछ नवगीतों में थी उसकी भरपाई यहाँ है. 'बिरवे', बासंती, चोली, पगली, सीली, दियासलाई आदि शब्दावली नवगीत को सम्प्राणित करती है. बधाई.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-24694080761792605602010-03-22T06:07:11.111+04:002010-03-22T06:07:11.111+04:00शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,
आँगन में बासंत...शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,<br />आँगन में बासंती धूप उतर आई है।<br />-अजय गुप्त की ये पंक्तियाँ तो सुन्दर हैं ही ;इन पंक्तियों में बिम्ब विधान नूतन कल्पना लिये हुए है-खेतों से पनघट तक<br />कोहरा ही कोहरा था,<br />कहीं नहीं हलचल थी<br />सब ठहरा-ठहरा था।<br />हिम निर्मित चोली के बटन सभी टूट गए,<br />मधुऋतु ने कुछ ऐसी ले ली अँगड़ाई है।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-7798191046977950292010-03-21T18:44:47.092+04:002010-03-21T18:44:47.092+04:00सब कुछ ही नया-नया है इस नवगीत में ।
अद्भुत कल्पना ...सब कुछ ही नया-नया है इस नवगीत में ।<br />अद्भुत कल्पना के साथ अनुपम भाव सौन्दर्य ।<br />बधाई तथा धन्यवाद ।शशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-21748643549896354072010-03-19T09:13:27.090+04:002010-03-19T09:13:27.090+04:00धन्यवाद रावेंद्रकुमार रवि जी अब मैं अपने विचार म...धन्यवाद रावेंद्रकुमार रवि जी अब मैं अपने विचार मेल बॉक्स द्वारा दिया करूँगा <br />विमल कुमार हेडाUnknownhttps://www.blogger.com/profile/10349939645452917532noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-28336535315581731672010-03-18T13:13:39.195+04:002010-03-18T13:13:39.195+04:00शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,
आँगन में बासंत...शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,<br />आँगन में बासंती धूप उतर आई है ।<br />सुन्दर पंक्तिया, अजय गुप्त जी को <br />बहुत-बहुत बधाई, धन्यवाद ।विमल कुमार हेडाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-3152298003561064652010-03-18T13:10:46.927+04:002010-03-18T13:10:46.927+04:00विमल कुमार हेडा जी,
अब आप कमेंट करने के लिए
निम्...विमल कुमार हेडा जी, <br />अब आप कमेंट करने के लिए <br />निम्नांकित विधि अपनाया कीजिए - <br /><b>1. Choose an identity से <br />Anonymous के स्थान पर <br />Name/URL के सम्मुख बाईं ओर बने <br />गोले पर क्लिक् कीजिए । <br />2. फिर Name के आगे बने आयत में <br />अपना नाम लिख दीजिए । <br />URL के आगे बने आयत को <br />खाली छोड़ दीजिए । <br />3. Leave your comment के नीचे बने <br />बॉक्स में अपना कमेंट लिख दीजिए । <br />4. अंत में Publish Your Comment पर <br />क्लिक् कर दीजिए ।</b> <br />-- <br />इस तरह से करने पर <br />आपका कमेंट निम्नांकित रूप में चमकेगा -रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-60493524747972928132010-03-18T10:15:28.467+04:002010-03-18T10:15:28.467+04:00खेतों से पनघट तक
कोहरा ही कोहरा था,
कहीं नहीं हलचल...खेतों से पनघट तक<br />कोहरा ही कोहरा था,<br />कहीं नहीं हलचल थी<br />सब ठहरा-ठहरा था।<br />हिम निर्मित चोली के बटन सभी टूट गए,<br />मधुऋतु ने कुछ ऐसी ले ली अँगड़ाई है।<br /><br />प्रकृति, पुरुष सब पर ही<br />बिखर गया रँग-अबीर,<br />मस्ती में डूब चुका<br />है युग चेता कबीर।<br />लपटों ने भून लिए नर्म चने के बिरवे,<br />बौराए आमों की बस्ती पगलाई है।<br /><br />uttam ati uttam Bhvabhiyakti Shriman Ajay Guptji.bas yon hi lahlahate rahiye.hamari shubhkamnaen apke sath hain.mandalsshttps://www.blogger.com/profile/18435280180094938316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-73207300263151339172010-03-18T08:08:54.927+04:002010-03-18T08:08:54.927+04:00शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,
आँगन में बासंत...शिखरों से घाटी तक सोना सा बिखर गया,<br />आँगन में बासंती धूप उतर आई है।<br />सुन्दर पंक्तिया, अजय गुप्त जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद<br />विमल कुमार हेडाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-49243349798928894142010-03-17T21:31:57.316+04:002010-03-17T21:31:57.316+04:00अभिनव बिंबों से सजा
एक अभिनव नवगीत!
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रचनाकार ...<b>अभिनव बिंबों से सजा <br />एक अभिनव नवगीत! <br />-- <br />रचनाकार की अनूठी दृष्टि ने <br />जिस-जिस से हमारा साक्षात्कार कराया, <br />वह सब अतुलनीय है!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.com