tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post7175967914615888954..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ०१ : कमल से सीखें सबकनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-53832927430643686512010-07-29T16:40:28.117+04:002010-07-29T16:40:28.117+04:00सीख लें हम सब कमल से
यह सबक छूटे न हमसे
पंक में र...सीख लें हम सब कमल से<br />यह सबक छूटे न हमसे<br /><br />पंक में रहकर न उसमें लिप्त होना<br />हलचलों के बीच स्थिर चित्त होना<br />पात पर उसके न रुकता जल कभी<br />और गीला कर न पाता पंक भी<br />कुछ न कुछ संदेश इसमें<br />कह रहा वह रोज सबसे<br />यह सबक छूटे न हमसे<br /><br />किस बंद से अपनी प्रतिक्रिया का आरंभ करूं और किससे अंत <br />अभी तक यही नहीं तय कर पाया और जब “ाुरू किया तो आद्योपांत अनायास<br />पढ़ता चला गया मानो सहज प्रवाह का आवेग समुंदर में समाकर ही दम लेगाा।<br />वाह! भाई वाह! इस सुरूचिपूर्ण व प्रवाहपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए कोटिषः<br />बधाई।mandalsshttps://www.blogger.com/profile/18435280180094938316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-43647205587584677172010-07-18T19:51:41.399+04:002010-07-18T19:51:41.399+04:00bahut sundar kavita hai aur kamal par ye ank bahut...bahut sundar kavita hai aur kamal par ye ank bahut achha haiडॉ० चन्द्र प्रकाश राय https://www.blogger.com/profile/08175631494535002443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-82662073663967395762010-07-11T20:46:33.457+04:002010-07-11T20:46:33.457+04:00डॉ. व्योम द्वारा मेल से प्रेषित संदेश -
कमल की बह...डॉ. व्योम द्वारा मेल से प्रेषित संदेश -<br /><br /><b>कमल की बहुत प्रजातियाँ हैं<br />....... जो कमल कीचड़ में उगता है उसे पंकज कहते हैं...... शेष को नहीं...... जैसे वारिज, नीरज, पुंडरीक, नीलोत्पल आदि आदि.....।</b>नवगीत की पाठशालाhttps://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-41807403181702021202010-07-11T16:30:18.089+04:002010-07-11T16:30:18.089+04:00इतना कुछ कहा जा चुका है कि
कहने को कुछ शेष नहीं ह...इतना कुछ कहा जा चुका है कि<br /> कहने को कुछ शेष नहीं है...हाँ,,,,,<br /><br />बधाई दी जा सकती है बस....<br /><br />सुभाष जी ! मैने कई बार इस रचना को पढा और हर बार एक ही बात .....वाह,,,,,वाह.......<br /><br />आभार आपका ।<br /><br /><br />सादर<br />गीतागीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-61513554007832874792010-07-10T16:00:01.666+04:002010-07-10T16:00:01.666+04:00मै मुग्ध हूं कि इस विद्वत्तापूर्ण गहन मंथन का कारण...मै मुग्ध हूं कि इस विद्वत्तापूर्ण गहन मंथन का कारण मैं बना। बहुत पारम्परिक अर्थों पर न जायं तो यह कहना गलत नहीं होगा कि बिना कीचड़ के कमल उग तो सकता है, पर उसकी पहचान शायद न हो पाये। दरअसल हमारा मन सहज रूप में बहुत पारम्परिक होता है, प्रयोग तो अभ्यास की उपज होता है। सच यह भी है कि कोई भी प्रयोग स्वतंत्र खड़ा नहीं हो सकता, उसकी जड़ें परम्परा के भीतर ही कहीं होती हैं। कमल की महत्ता और पहचान कीचड़ के कारण ही होती है। अगर सब सुन्दर हो तो सुन्दरता का आकर्षण ही नहीं रहेगा। कीचड़ के बिना अगर कोई कमल खिला तो उतना सुन्दर शायद न लगे।<br />संजीव सलिल जी के अति गहन विश्लेषण का आभार। Subhash Raihttps://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-58864951619832774682010-07-10T15:05:41.028+04:002010-07-10T15:05:41.028+04:00बहुत सुन्दर भाव भरी कविताबहुत सुन्दर भाव भरी कवितासंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-70255929515365102562010-07-10T12:58:42.839+04:002010-07-10T12:58:42.839+04:00पूर्णिमा वर्मन जी,
आपने मेरे प्रश्न का जो उत्तर द...पूर्णिमा वर्मन जी, <br />आपने मेरे प्रश्न का जो उत्तर दिया है, <br />उसके प्रत्युत्तर में मैं मात्र इतना ही कहना चाहता हूँ - <br /><br /><b>गीली मिट्टी कीचड़ नहीं होती है!</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-27731531451809164092010-07-10T10:13:47.777+04:002010-07-10T10:13:47.777+04:00रुचिकर, शिक्षाप्रद, सरस, गेय गीति रचना. गीत-नवगीत ...रुचिकर, शिक्षाप्रद, सरस, गेय गीति रचना. गीत-नवगीत की सीमारेखा पर दोनों में शुमार की जा सकने योग्य.<br />कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं. <br />Acharya Sanjiv SalilDivya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-18369165344886954372010-07-10T09:52:55.449+04:002010-07-10T09:52:55.449+04:00रावेंद्रकुमार रवि जी, कमल बिना कीचड़ के भी खिल सकत...रावेंद्रकुमार रवि जी, कमल बिना कीचड़ के भी खिल सकता है लेकिन जड़ों के लिए कम से कम दो इंच मिट्टी की आवश्यकता ज़रूर होती है। और यह मिट्टी 6 इंच पानी के नीचे होनी चाहिये तो आखिर में यह कीचड़ का ही रूप हो गई न? यह बात मैंने अपने अनुभव से लिखी है। हो सकता है कुछ प्रजातियाँ बिना मिट्टी के केवल पानी में खिल सकती हों शायद उन्हें ही वाटर लिली कहते हैं। इस विषय में विशेषज्ञों की टिप्पणी का स्वागत है।पूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-79550949589541978682010-07-10T09:44:57.621+04:002010-07-10T09:44:57.621+04:00सुभाष जी, आपका गीत लौटा...स्वागत है! अब यह नवगीत क...सुभाष जी, आपका गीत लौटा...स्वागत है! अब यह नवगीत का बाना ले और आपके मुक्त मस्तिष्क को मन की लय के साथ नित नवीन छंदों में रचे यही मंगल कामना है। आप इसी प्रकार पाठशाला के सदस्य बने रहें। हम सभी आपस में मिलकर सीख ही रहे हैं। आपकी टिप्पणियाँ और आपकी रचनाएँ दोनो ही हमारा उत्साहवर्धन करेंगी।पूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-15946064348150549562010-07-09T21:53:06.453+04:002010-07-09T21:53:06.453+04:00अच्छी बात है कि इस रचना का अधिकांश ठीक बताया है!
-...<b>अच्छी बात है कि इस रचना का अधिकांश ठीक बताया है!<br />-- <br />पर सबसे अधिक अखरनेवाली बात है : इसकी लंबाई!<br />-- <br />गीत की कोख से ही नवगीत का जन्म हुआ है,<br />अत: नवगीत में गीत की झलक आ जाना स्वाभाविक है!<br />-- <br />एक प्रश्न भी : क्या कमल केवल कीचड़ में ही उग सकता है?</b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-40438535770384885202010-07-08T22:44:51.033+04:002010-07-08T22:44:51.033+04:00मित्रों, यह न समझें कि मैं जवाब दे रहा हूं. पर मैं...मित्रों, यह न समझें कि मैं जवाब दे रहा हूं. पर मैं सच कहूं तो जिस दिन अनुभूति पर पूर्णिमा जी ने कार्यशाला के विषय की घोषणा की थी, उसी दिन अनायास यह रचना मन में जन्मी और कागज पर उतर आयी. मेरा आरम्भ गीत से ही हुआ, जैसा संजीव जी ने अनुमान किया है पर मैं अब छन्द से मुक्ति में अभिव्यक्ति के लिये ज़्यादा आकाश अनुभव करता हूं. यूं कहूं तो ज्यादा सही होगा कि मेरा मन छान्दिक है और मस्तिष्क छन्दमुक्त. मुझे गज़लें, गीत बहुत पसन्द हैं, और कई बार मेरी पुरानी लय लौट आती है. यह उसी लौटे हुए पल का गीत है.मैं अपने गीत के जीवितोच्छेद से मुग्ध हूं. सभी मित्रों, साहित्यानुरागी टिप्पणीकारों के विचारों ने मुझे आनन्दित किया. पूर्णिमाजी ने जिस तरह मेरा बचाव किया और सलीके से सलाह भी दी, वह बहुत अच्छा लगा. अविनाशजी का समाधान शायद सबको अच्छा लगे. मेरी बात कोई अंतिम बात नहीं है, इसलिये बात आगे ले जाने वाले और मित्रों का स्वागत है.डा सुभाष रायhttp://www.bat-bebat.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-23216463560193269272010-07-08T19:34:22.549+04:002010-07-08T19:34:22.549+04:00कार्यशाला के प्रथम सुन्दर गीत के लिये डा० सुभाष रा...कार्यशाला के प्रथम सुन्दर गीत के लिये डा० सुभाष राय जी को बहुत बहुत बधाई। यह नवगीत नहीं है ,ऐसा कहना ठीक नहीं है । गीत और नवगीत में अन्तर करने के लिये कोई सीधी रेखा खींच देना आसान नहीं है, मैं मुक्ता जी की टिप्पणी से पूर्णतः सहमत हूँकटारेhttps://www.blogger.com/profile/15644985829200000634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-8557714046329595362010-07-08T17:48:27.125+04:002010-07-08T17:48:27.125+04:00नवगीत न सही गीत ही सही
पर इसे कमलगीत कहा जाए
और ब...नवगीत न सही गीत ही सही<br />पर इसे कमलगीत कहा जाए<br /><br />और बात बन जाए ...अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-44015566625654990652010-07-08T14:21:00.527+04:002010-07-08T14:21:00.527+04:00मैं पूर्णिमा जी और मुक्ता जी दोनो की बात से सहमत ह...मैं पूर्णिमा जी और मुक्ता जी दोनो की बात से सहमत हूँ। कवि ने नवगीत का आग्रह नहीं रखा है लेकिन यह नवगीत नहीं है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। नवगीत में नया कुछ प्रस्तुत करने या देखने की जैसी अभिलाषा पाठशाला के पाठकों को रहती है एकदम से यह रचना वैसा प्रभाव शायद नहीं छोड़ती लेकिन निःसंदेह तथ्य और लय से भरपूर यह एक उत्कृष्ट रचना है। रचनाकार को बधाई।suruchihttps://www.blogger.com/profile/17510455285961103373noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-39340912187326451402010-07-08T14:09:46.202+04:002010-07-08T14:09:46.202+04:00वाह वाह क्या खूब, इस गीत में कमल का शायद ही ऐसा को...वाह वाह क्या खूब, इस गीत में कमल का शायद ही ऐसा कोई पक्ष होगा जिसे सहेजा नहीं गया हो। भले ही पहली दृष्टि में यह सामान्य गीत लगे पर नवगीत के कुछ तत्त्व इसमें ढूँढे जा सकते हैं। उदाहरण के लिये- <br />1- "हलचलों के बीच स्थिर चित्त होना" इस कथन में एक नयापन ज़रूर है, साथ ही 'चित्त' के साथ 'लिप्त' की तुक बेहद नई और कर्णप्रिय है। इसी प्रकार 'जल' और 'पंक' की ध्वनि को बड़ी कुशलता से पंक्तियों के अंत में सजाया गया है।<br />2- "कीच दलदल में उलझता आदमी"- नवगीत का ही विषय है पारंपरिक गीतों का नहीं। <br />3- "रश्मियों की थाप पर तन डोलता, सूर्य उगता तो कमल मुख खोलता" ये दो पंक्तियाँ नवगीत के प्रकृति वर्णन की परंपरा में ही हैं।<br />4- अंतरे की अंतिम पंक्ति जिस प्रकार पहली चार पंक्तियों से अलग की गई है और मुखड़े के साथ जोड़ी गई है वह सौ प्रतिशत नवगीत का शिल्प ही है। इसलिये मेरे विचार से इस गीत को नवगीत की दृष्टि से बिलकुल खारिज कर देना ठीक नहीं है। इसे नवगीत माना जाना चाहिये।विनीता का चिट्ठाhttps://www.blogger.com/profile/10089696708728410209noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-29954430549542768022010-07-08T13:53:39.549+04:002010-07-08T13:53:39.549+04:00संजीव जी, सबसे पहले तो आपकी उपस्थिति का स्वागत। आप...संजीव जी, सबसे पहले तो आपकी उपस्थिति का स्वागत। आपकी सार्थक टिप्पणियाँ सदस्यों के लिए बहुत लाभकारी रहती हैं। सुभाष जी के गीत से नए रचनाकार यह सीख सकते हैं कि एक गीत में तथ्य और लय दोनो के ऊपर समान अधिकार रखते हुए गीत कैसे लिखा जा सकता है। भले ही रचनाकार ने इसमें कुछ नए प्रयोग नहीं किये हैं। शायद उनका ध्यान नवगीत लिखने की ओर नहीं गया। आशा है आगे के गीतों में उस नवीनता की ओर भी ध्यान देंगे जिसके लिये नवगीत की पाठशाला जानी जाती है।पूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-68844539111375033202010-07-08T12:57:52.914+04:002010-07-08T12:57:52.914+04:00बहुत सुन्दर गीत...खासकर निम्न पंक्तियाँ
कीच, दलद...बहुत सुन्दर गीत...खासकर निम्न पंक्तियाँ <br /><br />कीच, दलदल में उलझता आदमी<br />क्यों कमल जैसा न बनता आदमी<br />रास्ता सच का न मिलता है कभी<br />या कि सच से दूर रहता आदमी<br />झूठ, धोखा, छल बहुत है<br />सत्य का संधान कबसे<br />यह सबक छूटे न हमसेराणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)https://www.blogger.com/profile/17152336988382481047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-77764451374776158302010-07-08T07:48:09.116+04:002010-07-08T07:48:09.116+04:00शास्त्री जी से सहमत हूँ, बहुत अच्छा गीत है मगर नवग...शास्त्री जी से सहमत हूँ, बहुत अच्छा गीत है मगर नवगीत नहीं है।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-49896496817899168442010-07-08T07:46:10.305+04:002010-07-08T07:46:10.305+04:00राय सर को छन्द में देखना बहुत अच्छा लग रहा है. गीत...राय सर को छन्द में देखना बहुत अच्छा लग रहा है. गीत भी बहुत अच्छा हुआ है. बेशक नवगीत न हो अगली कार्यशाला में वो भी आ जायेगा. मेरा अन्दाज सही निकला राय जी पुराने गीतकार हैं. पूर्णिमा जी आपको बहुत-बहुत बधाई.संजीव गौतमhttps://www.blogger.com/profile/00532701630756687682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-56880663207641887762010-07-08T04:50:03.978+04:002010-07-08T04:50:03.978+04:00बढ़िया गीत है!
मगर नवगीत नही है!बढ़िया गीत है!<br />मगर नवगीत नही है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com