tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post7263571808844829584..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ७. उम्मीदें थींनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-41545065663249780432013-08-31T15:58:20.359+04:002013-08-31T15:58:20.359+04:00बहुत खूब कृष्ण नन्दन जी, अच्छा नवगीत है। बधाई स्वी...बहुत खूब कृष्ण नन्दन जी, अच्छा नवगीत है। बधाई स्वीकारें‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-39064272995689801462013-08-21T20:47:10.690+04:002013-08-21T20:47:10.690+04:00आभार आकुल जी.. रचना पर आपकी उपस्थिति के लियेआभार आकुल जी.. रचना पर आपकी उपस्थिति के लियेकृष्ण नन्दन मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05640264086166404241noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-86552005659260316842013-08-21T20:45:54.137+04:002013-08-21T20:45:54.137+04:00हार्दिक आभार आ.कल्पना जी रचना को प्रोत्साहन के लिय...हार्दिक आभार आ.कल्पना जी रचना को प्रोत्साहन के लियेकृष्ण नन्दन मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05640264086166404241noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-52748152380056857222013-08-21T20:43:50.418+04:002013-08-21T20:43:50.418+04:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.कृष्ण नन्दन मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05640264086166404241noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-64993508651502080282013-08-16T16:50:29.040+04:002013-08-16T16:50:29.040+04:00हल्की
ममता हुई सियासत के हलके में
सरहद से माँ को ...हल्की <br />ममता हुई सियासत के हलके में<br />सरहद से माँ को मिलते हैं धड़ तोहफ़े में<br />इल्म न था इस तरह लहू की <br />लाली जायेगी।<br />बहुत ही मर्मस्पर्शी। सुंदर नवगीत। बधाई। <br />-आकुलआकुलhttps://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-68393731365748477522013-08-16T16:09:20.869+04:002013-08-16T16:09:20.869+04:00रखा सूद पर
जुआ और हल तक बैलों का
बस खुदकुशियाँ ही ...रखा सूद पर<br />जुआ और हल तक बैलों का<br />बस खुदकुशियाँ ही हल हैं ठण्डे चूल्हों का<br />तय तो था खलिहानों की <br />बदहाली जायेगी।...<br />बहुत मार्मिक चित्रण हुआ है आपके नवगीत में, कृष्ण नन्दन जी, हार्दिक बधाई आपको कल्पना रामानीhttps://www.blogger.com/profile/17587173871439989311noreply@blogger.com