tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post2410229580565816112..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ०६ : कोयल भूली कूक : धर्मेंद्रकुमार सिंह 'सज्जन'नवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-54665869456553092412010-05-11T01:10:04.848+04:002010-05-11T01:10:04.848+04:00एक विचारोत्तेजक नवगीत के लिये धन्यवाद । प्रत्येक श...एक विचारोत्तेजक नवगीत के लिये धन्यवाद । प्रत्येक शब्द-बिम्ब आतंक का चित्रण करते हुए एक दृश्य प्रस्तुत करते हैं । धन्यवाद<br />शशि पाधाShashi Padhahttps://www.blogger.com/profile/00598501778506881242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-56934849011626201532010-05-07T22:20:37.743+04:002010-05-07T22:20:37.743+04:00छंदहीनता की कारा के पहरेदार उलूक.
नवगीतों ने साध न...छंदहीनता की कारा के पहरेदार उलूक.<br />नवगीतों ने साध निशाना मारा दाँव अचूक.<br /><br />पिरो दिये गीतों में.<br />सज्जन ने भावों के शब्द-चित्र रच.<br />गीत रसिक कोई भी<br />बिम्बों के प्रभाव से नहीं सका बच.<br />परंपरा नव बना सकेगा, वह जिसमें हो हूक.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-466048113212668292010-05-07T21:11:04.348+04:002010-05-07T21:11:04.348+04:00बहुत बढ़िया नवगीत.....बहुत बढ़िया नवगीत.....संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-40376923776906458612010-05-05T09:57:58.117+04:002010-05-05T09:57:58.117+04:00इक दिन आयेगा वह पलए
जब अंधा धर्म आँख पाएगाय
देखेगा...इक दिन आयेगा वह पलए<br />जब अंधा धर्म आँख पाएगाय<br />देखेगा मासूमों का खूँए<br />तो रोकर वह मर जाएगाय<br />देगी मिटा धर्मगुरुओं को फिर उनकी ही चूक।<br /><br />और इसी आशा के साथ सभी जी रहें है। बहुत सुन्दर नवगीत, धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।<br /><br />विमल कुमार हेड़ा।विमल कुमार हेड़ाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-48758272456517737962010-05-05T05:14:00.061+04:002010-05-05T05:14:00.061+04:00बढ़िया नवगीत!
बहुत सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया ह...बढ़िया नवगीत!<br />बहुत सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-87176321720760466432010-05-05T01:54:54.756+04:002010-05-05T01:54:54.756+04:00बहुत खूब! सज्जन साहब,
नफ़रत के प्यालों में,
जन्नत...बहुत खूब! सज्जन साहब,<br /><br />नफ़रत के प्यालों में,<br />जन्नत के सपनों की मदिरा देकर;<br />दोपाए मूरख पशुओं से,<br />मासूमों का कत्ल कराकर;<br />धर्म बेचने वाले सारे रहे ख़ुदी पर थूक।...<br />...पैकेट में आया था लुक-छिपकर बारूद। <br /><br /> बहुत सही वर्णन किया है.sharda monga (aroma)https://www.blogger.com/profile/02838238451888739255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-67570438585819727282010-05-04T18:16:30.836+04:002010-05-04T18:16:30.836+04:00इक दिन आयेगा वह पल,
जब अंधा धर्म आँख पाएगा;
देखेगा...इक दिन आयेगा वह पल,<br />जब अंधा धर्म आँख पाएगा;<br />देखेगा मासूमों का खूँ,<br />तो रोकर वह मर जाएगा;<br />देगी मिटा धर्मगुरुओं को फिर उनकी ही चूक।<br />काश!... ओ पल जल्दी आ जाता. ए पंक्तियाँ भी खूब हैं -<br /><br />रोटी छुपी दाल में जाकर,<br />चावल दहशत का मारा है;<br />सब्जी काँप रही है थर-थर,<br />नमक ही कथित हत्यारा है;<br />इसके पैकेट में आया था लुक-छिपकर बारूद।उत्तम द्विवेदीnoreply@blogger.com