tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post7834659040721816845..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: ३. सड़कों परनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-54887084956689025992011-02-18T10:22:34.594+04:002011-02-18T10:22:34.594+04:00रचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवादरचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-21600418976414342062011-01-31T18:00:10.263+04:002011-01-31T18:00:10.263+04:00ओ शंख चक्र धारी
अब तो उतर धरा पर
सब काले रास्तों क...ओ शंख चक्र धारी<br />अब तो उतर धरा पर<br />सब काले रास्तों को<br />इक बार फिर हरा कर<br />कब से समय के दिल में<br />ये लालसा पली है<br /><br /><br />मन को छूती अभिव्यक्ति... बधाई.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-92169908734122652932011-01-26T12:24:15.864+04:002011-01-26T12:24:15.864+04:00धर्मेन्द्र भाई, दिल में आ रहा है कि हर एक पंक्ति प...धर्मेन्द्र भाई, दिल में आ रहा है कि हर एक पंक्ति पर कहूँ| क्या बात है बन्धुवर, बहुत खूब| पूरा का पूरा ही नवगीत दिल चीरे डाल रहा है| बधाई स्वीकार करें मित्र|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-80459103507130073272011-01-25T19:33:32.328+04:002011-01-25T19:33:32.328+04:00है भागती अमीरी
सड़कों के मध्य जाकर
है तड़पती गरीबी
प...है भागती अमीरी<br />सड़कों के मध्य जाकर<br />है तड़पती गरीबी<br />पहियों के नीचे आकर<br />काली इसी लहू से<br />हर सड़क हर गली है<br />sunder bhav <br />bahut bahut badhai<br />saader<br />rachanarachananoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-15934222394309799742011-01-25T12:54:30.372+04:002011-01-25T12:54:30.372+04:00ओ शंख चक्र धारी
अब तो उतर धरा पर
सब काले रास्तों क...ओ शंख चक्र धारी<br />अब तो उतर धरा पर<br />सब काले रास्तों को<br />इक बार फिर हरा कर<br />कब से समय के दिल में<br />ये लालसा पली है<br /><br /><br />संवेदन शील मन की गुहार...मन के हर पथ पर संवेदना भर गयी...<br /><br />बहुत सुंदर धर्मेन्द्र जी...<br />आभार आपका....गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.com