tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post9067769813838543754..comments2024-03-23T00:12:37.328+04:00Comments on नवगीत की पाठशाला: १३. देखता हूँ इस शहर कोनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-24599376945816563422011-08-27T12:26:53.146+04:002011-08-27T12:26:53.146+04:00यहाँ तोते बाज से मिल
पंछियों के पर कतरते!
इस अद्भ...यहाँ तोते बाज से मिल<br />पंछियों के पर कतरते!<br /><br />इस अद्भुत अभिव्यक्ति को सलाम....<br />सादर...S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')https://www.blogger.com/profile/10992209593666997359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-13187054582798803162011-08-27T06:25:29.807+04:002011-08-27T06:25:29.807+04:00कंपकपांते होठ नाहक
थरथराती देह है
और कुर्ते पर चढ़...कंपकपांते होठ नाहक<br />थरथराती देह है<br />और कुर्ते पर चढ़ा बस<br />इस्तरी-सा नेह है<br /><br />पूछिए मत हाल बस<br />हर हाल में सजते-सँवरते<br /><br /><br />..... सुंदर सशक्त नवगीत के लियें <br />भारतेंदु जी को बधाई...गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-50402093080051861752011-08-27T05:04:33.185+04:002011-08-27T05:04:33.185+04:00लूटकर लाए पतंगे
लग्गियों से जो यहाँ
कैद उनकी मुट्ठ...लूटकर लाए पतंगे<br />लग्गियों से जो यहाँ<br />कैद उनकी मुट्ठियों में<br />आजकल दोनों जहाँ<br /><br />बेहतरीन नवगीत के लिए बधाईVandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-50510831538727233882011-08-26T12:26:27.970+04:002011-08-26T12:26:27.970+04:00इस सुंदर नवगीत के लिए भारतेन्दु जी को हार्दिक बधाई...इस सुंदर नवगीत के लिए भारतेन्दु जी को हार्दिक बधाई।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-35892000325341870962011-08-26T08:49:22.976+04:002011-08-26T08:49:22.976+04:00लूटकर लाए पतंगे
लग्गियों से जो यहाँ
कैद उनकी मुट्ठ...लूटकर लाए पतंगे<br />लग्गियों से जो यहाँ<br />कैद उनकी मुट्ठियों में<br />आजकल दोनों जहाँ<br /><br />कुछ धुआँते पेड़<br />उन पगडंडियों की याद करते!<br /><br />भाई भारतेंदु मिश्र का यह नवगीत फ़िलवक्त को बड़े ही सशक्त रूप में व्याख्यायित करता है| निश्चित ही यह पाठशाला की उपलब्धि-रचना है| साधुवाद भारतेंदु जी को और बधाई 'नवगीत पाठशाला' को नवगीत-प्रसंग को सार्थक बनाने के लिए|<br />कुमार रवीन्द्रkumar ravindrahttp://navgeetpathshala.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8772772482860068162.post-48149605885069797482011-08-26T06:48:48.175+04:002011-08-26T06:48:48.175+04:00बहुत सुन्दर नवगीत है भारतेन्दु जी का, महानगरीय जीव...बहुत सुन्दर नवगीत है भारतेन्दु जी का, महानगरीय जीवन की वास्तविकता को पूरी तरह से नवगीत में प्रस्तुत किया गया है।<br /><br />" रोज़ जीते, रोज़ मरते<br />उम्र यों ही कट रही है<br />सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते !<br /><br />फिर कपोतों की उमीदें<br />आँधियों में फँस गई है<br />बया की साँसे कहीं पर<br />फुनगियों में कस गई है "<br /><br />इस बहुत सुन्दर नवगीत के लिये हार्दिक वधाई।डा० जगदीश व्योमhttp://www.navgeet.blogspot.comnoreply@blogger.com