नवगीत की पाठशाला

नवगीत की पाठशाला में आप सबका हार्दिक स्वागत है!

7 सितंबर 2014

९. बिन शाखाओं के - गीता पंडित

›
बिन शाखाओं के देखो तो बूढ़ा पीपल फफक रहा है नहीं वृक्ष ने कुछ चाहा वो जीवन देते आये हैं काट उन्हें करते अपंग हम कैसे अपने साये है...
3 टिप्‍पणियां:
6 सितंबर 2014

८. काट रहे सब डाल - कृष्णनंदन मौर्य

›
काट रहे सब, डाल वही हैं बैठे जिसको थाम। बूढ़ा बरगद सोच रहा दिन कैसे आये राम। बाग, फूल, तितली बसंत से रंग हुआ गायब झूठे बादल लेकर...

७. जंगलों में - कल्पना रामानी

›
सोच में डूबा हुआ मन जब उतरता जंगलों में। वे हरे जीवन भरे दिन याद करता जंगलों में। कल जहाँ तरुवर खड़े थे ठूँठ दिखते उस जगह। रात रहत...
5 सितंबर 2014

६. लुट रहे जेवर - रामशंकर वर्मा

›
दिनदहाड़े मेदिनी के लुट रहे जेवर। पहरुए खा रहे घेवर। वल्लरी द्रुम लता पादप के जड़ाऊ हार सदानीरा मेखलाओं की रजत जलधार सौंप कर पुरखे...

५. जादू की बाँसुरी - डॉ. प्रदीप शुक्ल

›
दूर देश में जादू की बाँसुरी बजाता है पूरब से सोने की चिड़िया पास बुलाता है !! जादूगर बंजर धरती की काया पलट गये सपनों के जंगल उग आये ...
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें

स्वागतम

मेरी फ़ोटो
नवगीत की पाठशाला
नवगीत सीखने सिखाने वालों का यहाँ स्वागत है।
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
Blogger द्वारा संचालित.