16 अप्रैल 2009

गीत आमंत्रण - १

नवगीत की पाठशाला में समय-समय पर किसी विशेष विषय या पंक्ति पर गीत आमंत्रित किये जायेंगे। शास्त्री नित्यगोपाल कटारे, पूर्णिमा वर्मन, व डा. जगदीश व्योम की समीक्षा के उपरांत चुने हुए गीतों को अनुभूति पत्रिका में प्रकाशन का अवसर मिलेगा। मैं, मानसी, आप सब के साथ इस राह पर चलूँगी। आइए साथियों, तो देर किस बात की, अपने भावों को गीतों में ढाल दें और नवगीत के विषय में जानकारी के लिये दाहिने स्तंभ में नवगीत क्या है और नवगीत कैसे लिखें शीर्षक को पढ़ें।

गीत भेजते समय ध्यान रखें कि-
१.गीत टिप्पणी में न भेजें बल्कि इस पते पर भेजें- manoshi@gmail.com
२. गीत भेजने की अंतिम तिथि है ३० अप्रैल, २००९।

३. अप्रैल माह के लिये आमंत्रित गीत के मुखड़े में निम्नलिखित पंक्ति आना ज़रूरी है - प्यार का रंग न बदला। उदाहरण के लिए नचिकेता का एक गीत प्रस्तुत है-

प्यार का रंग न बदला

दुनिया बदली
मगर प्यार का रंग नहीं बदला

अब भी
खिले फूल के अन्दर
खुशबू होती है
गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ
आँखें रोती हैं
कविता बदली, पर
लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला

वर्षा होती
आसमान में बादल
घिरने पर
पात बिखर जाते हैं
जब भी आता है पतझर
पर पेड़ों से
पत्तों का आसंग नहीं बदला

हरदम भरने को उड़ान
तत्पर रहती पाँखें
मौसम आने पर
फूलों से
लदती हैं शाख़ें
बदली हवा
सुबह होने का ढंग नहीं बदला

6 टिप्‍पणियां:

  1. हरदम भरने को उड़ान
    तत्पर रहती पाँखें
    मौसम आने पर
    फूलों से
    लदती हैं शाख़ें
    बदली हवा
    सुबह होने का ढंग नहीं बदला
    bahut badhiya rachana .dhanyawad.

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  2. सबसे पहले नव गीत की पाठशाला की पूरी टीम को इस नई पहल के लिए बधाई.
    निश्चित र्रोप से इस पाठशाला से जुड़कर खासतौर पर नवागन्तुक बहुत कुछ सीखेंगे.
    - विजय तिवारी 'किसलय'

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  3. शुभकामनाएं नई शुरुआत के लिए .............

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  4. ’एक बार और जाल फेंक रे मछेरे
    जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’
    पूरा गीत मिल सकेगा मुझे?

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  5. यह नवगीत अपनी मिसाल आप है...कथ्य, शिल्प, बिम्ब, भाव, रस, लय और प्रतीक हर तत्व संतुलित है. एक भी शब्द निरर्थक नहीं है.

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  6. कैसा भ्रम है
    अविरल क्रम है
    हर पल, क्षण सब कुछ बदला है
    मेरा मन तो नहीं मानता
    प्यार का रंग नहीं बदला है।।

    कितने धोखे
    छल, प्रपंच हैं
    मक्कारों से भरे मंच हैं
    झूठों की झूठी दुनिया में
    झूठे ही बन गए पंच हैं
    झूठ कहेंगे
    झूठ सहेंगे
    झूठ की खातिर
    झूठ लिखेंगे
    झूठ-नगर के कोलाहल में
    झूठों का परचम बदला है
    चलो जूठ ही लिख देता हूँ
    "प्यार का रंग नहीं बदला है" ।।
    -अनाम

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