1 मई 2009

1- संजीव गौतम

सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

भोजपत्र के युग से
कम्प्यूटर के युग तक
दुनिया ने आँसू दे-देकर
छीने हैं हक़
हरिक हँसी पर
ताले जड़ डाले नफ़रत ने
है चला आ रहा
सतत् यही क्रम आज तलक
लेकिन प्रेम-दिवानी
मीरा ने हर युग में,
हँस कर विष पीने का
अपना ढंग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

साँसों पर पहरे
लेकिन ज़िन्दा है अब भी
वर्जित फल चख़ने की
अभिलाषा है अब भी
जंगल हो,बस्ती हो,
पर्वत हो या सहरा,
ढाई आखर है तो
ये दुनिया है अब भी
सतयुग से कलियुग तक
जग बेशक आ पहुँचा,
फूलों ने खुशबू का
लेकिन संग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

--संजीव गौतम

15 टिप्‍पणियां:

  1. शास्त्री जी को मेरा प्रणाम पहुँचे.

    हम तो यात्रा में व्यस्त रहे, पता ही नहीं चल पाया.

    तीन तारीख को कनाडा पहुँच जायेंगे, तब नियमित होते हैं आपकी क्लास में.

    बहुत शुभकामनाऐं.

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  2. किसी अन्य के चाहे गये विषय पर और चाही गई विधा में कविता लिखना सचमुच कवि की प्रायोगिक परीक्षा होती है। संजीव गौतम जी का नाम इस परीक्षा की मेरिट लिस्ट में है । तुरन्त इतना अच्छा नवगीत लिख देना निःसन्देह कवि की परिपक्व अवस्था का द्योतक है। इस नवगीत में वे सभी विशेषताएं मौजूद हैं जो नवगीत कहलाने के लिये आवश्यक हैं। नये नये प्रतीकों, आधुनिक उपमाओं से परिपूर्ण यह गीत नितान्त मौलिकता लिये हुए है। फिर भी संजीव जी एक जगह अचानक रुक जाना पड़ता है। जैसे वासमती चावल खाते खाते अचानक कंकड़ आ जाये ।
    " है चला आ रहा
    सतत् यही क्रम आज तलक."
    यह पंक्ति पूर्व पंक्तियो् से मेल नहीं खाती ।इसे इस तरह कहें तो अधिक ठीक होगा॰॰॰॰
    चला आ रहा
    लगातार क्रम वही आज तक
    शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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  3. संजीव गौतम जी का यह गीत इस आमंत्रण में आए सबसे सुंदर गीतों में से एक है। नया छंद है जिसमें लय है, छंद को लगभग पूरी कविता में कुशलता से निभाया गया है। समकालीन सरोकारों को विचारपूर्वक ग्रहण किया गया है और ऐतिहासिक संदर्भों को परिष्कृत स्पर्श दिया गया है।

    भोजपत्र के युग से
    कम्प्यूटर के युग तक...वाह!

    जंगल हो,बस्ती हो,
    पर्वत हो या सहरा,
    ढाई आखर है तो
    ये दुनिया है अब भी... आशा और आदर्श का बहुत सुंदर संदेश है।

    ढेर सी बधाई!

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  4. अच्छी रचना। वाह।

    नफरत ने ताले जड़े बदल रहा हर ढ़ंग।
    सहमत हूँ न बदल सका केवल प्यार का रंग।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. संजीव गौतम जी,ढेर सी बधाई!
    बहुत सुंदर
    अच्छी रचना। वाह।
    kamal ashique,
    09412561672
    www.ashiquekamal.blogspot.com
    kamalashique@gmail.com
    kamalashique@rediffmail.com

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  6. "भोजपत्र के युग से
    कम्प्यूटर के युग तक
    दुनिया ने आँसू दे-देकर
    छीने हैं हक़"
    बहुत सुन्दर !
    अच्छी लगी पूरी कविता !

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  7. आदरणीय संजीव जी,
    बहुत सुन्दर गीत है, किसी अन्य द्वारा सुझाए हुए भाव पर रचना करना और उसे सुन्दर शब्द, लयबद्दता के साथ प्रस्तुत करना बहुत ही सराहनीय है।

    पर्वत हो या सहरा
    ढाई आखर का मन्त्र हो तो
    लगे कहीं न पहरा
    एक मन को बांधने वाला गीत ।
    सधन्यवाद।
    शशि पाधा

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  8. नवगीत की पाठशाला के सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई।
    संजीव गौतम का नवगीत सभी को पसंद आ रहा है। संजीव के पास लम्बा अनुभव है, उनके पास भाषा की पकड़ है, अच्छा शब्द विन्यास है यह सब उनके द्वारा प्रस्तुत नवगीत में झलक रहा है। नवगीत लिखने के उपरान्त उसको बार बार निखारने के लिए मेहनत करनी होती है। यह नवगीत भी अभी मेहनत माँग रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि संजीव का अगला नवगीत और भी अच्छा होगा। नवगीत की पाठशाला में सहभागिता करने के लिए बहुत बहुत आभार।
    -डा० जगदीश व्योम

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  9. संजीव जी के इस अद्‍भुत गीत को पढ़ कर अपने ऊपर खीझ हो रही कि मैंने अपनी अदनी-सी रचना को भेजने के बारे में सोचा भी कैसे..ऊपर से शास्त्री जी, पूर्णिमा जी और डाक्टर व्योम जैसे दिग्गजों के समक्ष....

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  10. चला आ रहा
    सतत् यही क्रम आज तलक
    लेकिन प्रेम-दिवानी
    मीरा ने हर युग में,
    हँस कर विष पीने का
    अपना ढंग न बदला

    सतयुग से कलियुग तक
    जग बेशक आ पहुँचा,
    फूलों ने खुशबू का
    लेकिन संग न बदला

    नवगीत के शिल्प और तुकांत की सीमा मे रहकर एक बेहद शानदार गीत है.
    "प्रेम मे पहले टैस्ट मैच
    होते थे अब ये २०-२० हैं
    खेल की गति बदली है
    पर खेल का ढंग न बदला"

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  11. सभी मित्रों को मेरा प्रणाम.
    आप सबको मेरा सादर अभिवादन और बहुत-बहुत शुक्रिया जो मेरे गीत को अपना स्नेह प्रदान किया. आदरणीय पूर्णिमा जी, व्योम जी, कटारे जी, सुमन जी, राजरिशी जी, हरी शर्मा जी, कमल भाई, शशि जी, शार्दुला जी मैं आप सबका व्यक्तिगत रूप से, दिल से आभार प्रकट करता हूँ. कटारे जी और व्योम जी ने जिस तरफ संकेत किया है उसके लिये विशेष आभार. वे संकेत मेरे ज़ेहन में हैं. मैंने पूर्णिमा जी से कहा भी था कि मन अभी संतुष्ट नहीं है, थोड़ी कोशिश और करना चहता हूँ, लेकिन कोशिश फिर हो ही नहीं पायी समय की पाबन्दी और निर्वाचन की ड्यूटी की व्यस्तता ने कुछ करने ही नहीं दिया. मैं सिर्फ ग़ज़लें कहने की कोशिश करता हूँ, लेकिन आदरणीया पूर्णिमा जी ने जब स्नेहात्मक आदेश दिया कि ग़ज़लें कहते रहना फिलहाल एक नवगीत लिखो, तब ये नवगीत शायद सिर्फ उनके विश्वास की मर्यादा को बचाये रखने के लिये आया हैं. मुझे प्रसन्नता है कि मै उनके भरोसे पर ख़रा उतरा. भविष्य मैं भी आप सबका स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा ऐसा मुझे विश्वास है.
    -- संजीव गौतम

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  12. सशक्त नवगीत...भावप्रवण अभियक्ति..आप अपनी छाप छोड़ रहे हैं

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  13. Mujhe navgeet ki pathashala ke tino geet Manoshi ji Mohinerji aur Sanjiv ji ke achchhe lage hain.
    Pranam ke saath
    KshetrapalSharma

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  14. वाह नवगीत की पाठशाला के लिये बधाई... शुभकामनाएं

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  15. बहुत अच्छा लिखा है संजीव जी, आपके ये लंबे अंतरे बहुत भाए, पंक्तियों में बहाव भी खूब है। बधाई

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