हिल-मिल
दीपावली मना रे...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा,
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित
नित नव
आशा-दीप जला रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...
*
तन-दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे.
श्वासा की
चिंगारी लेकर,
आशा जीवन-
ज्योति जला रे.
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर-
मुक्त हस्त से
'सलिल' लुटा रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...
-- संजीव सलिल
वाह सलिल जी को तो मानना पड़ेगा। क्या प्रवाह है गीत में। एक आशा,उल्लास एवं विश्वास से भरपूर रचना के लिए सलिल जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंनवगीत की शास्त्रीयता के विषय में तो विशेषज्ञ ही राय देंगे लेकिन निम्न पंक्तियाँ विशेष अर्थपूर्ण लगीं। रचनाकार को बधाई!
जवाब देंहटाएंतम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित
नित नव
आशा-दीप जला रे.
सादर
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर नवगीत के लिये सलिल जी को साधुवाद। अच्छे कथ्य को निर्बाध प्रवाह सधी हुई लय में व्यक्त करना सचमुच कठिन होता है जो इस गीत में साफ साफ दिखाई दे रहा है। पुनः शुभकामना।
जवाब देंहटाएंतन दीपक
जवाब देंहटाएंमन बाती प्यारे
प्यास तेल को
मत छलका रे,
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई हो, सलिल जी
तन-दीपक
जवाब देंहटाएंमन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे.
श्वासा की
चिंगारी लेकर,
आशा जीवन-
bahut khub
aap ke liye kya likhun ek ek shabd ek ek line bhav purn hai
badhai
saader
rachana
उत्साहवर्धन हेतु आप सभी का आभार.
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