कोहरे में
भोर हुई, दोपहरी कोहरे में!
कोहरे में शाम हुई,रात हुई कोहरे में!
कलियों के
खिलने की,आहट भी थमी हुई!
तितली के पंखों की,हरक़त भी रुकी हुई!
मधुमक्खी गुप-चुप है, चिड़िया भी डरी हुई!
भौंरे के
गीतों की,मात हुई कोहरे में!
सरसों कुछ
रूठी है, गेहूँ गुस्साया है!
तभी तो पसीना हर,पत्ती पर आया है!
खेतों में सिहरन का,परचम लहराया है!
मौसम पर
ठंडक की, घात हुई कोहरे में!
घर में
हम क़ैद हुए, ठंड-भरी हवा चले!
टोप पड़े सिर पर तो,मफ़लर भी पड़े गले!
दौड़ रहे दबकर हम, कपड़ों के बोझ तले!
कपड़ों की
संख्या भी, सात हुई कोहरे में!
भुने हुए
आलू की, गंध बहुत मन-भाती!
चाय-भरे कुल्हड़ से, गर्माहट मिल जाती!
आँखों ही आँखों में, बात नई बन जाती!
साँसों से
साँसों की, बात हुई कोहरे में!
-- रावेंद्रकुमार रवि
खटीमा (ऊधमसिंहनगर)
सजीव चित्रण।
जवाब देंहटाएंसरसों कुछ रूठी है,
जवाब देंहटाएंगेहूँ गुस्साया है!
तभी तो पसीना हर,
पत्ती पर आया है!
खेतों में सिहरन का,
परचम लहराया है!
मौसम पर ठंडक की,
घात हुई कोहरे में!
EXCELLENT ONE
GOOD ONE AT BAD TIME
REALLY YOU HAVE PENNED ONE.
BHAI THAND MEIN GEET NE GARMI DI H
waah...navgeet sansad men aapka swagat hai
जवाब देंहटाएंgeet shilp aur bimb ki drishti se shreshtha hai. kohare aur thand men paseena kaise? paseene ke liye garmi, mehnat ya ghabrat=hat hona chahiye. teenon ke abhav men...?
sarson kuchh roothee hai / gehonn ghabraya hai... vichar karen...ghabrahat men paseena aata hai. sarson gussa ho to gehoon ka ghabrana bhee swabhavik hoga.
लयात्मकता और गतिशीलता लिये हुए सुन्दर नवगीत जिसे बार बार पढ़ने का मन करता है । सुन्दर शब्द संयोजन । पढ़कर मन में एक कोहरेपन का एहसास होता है । प्रकृति के इस कोहरेपन को तो सूरज की किरणे दूर कर देती है पर मानव ने जो कोहरापन प्रकृति पर फैलाया है वह कैसे दूर हो । प्रकृति का सुन्दर चित्र प्रस्तुत हुआ है इस कविता में ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत-बधाई रवि जी!
जवाब देंहटाएंयह नवगीत तो आपने मेरे पास ही बैठकर लिखा था!
नये प्रतीकों से सजे हुए गीत को ही तो नवगीत कहा जाता है! इसमे वो सारे परिदृश्य विद्यमान हैं।
आप सबका आशीष और स्नेह
जवाब देंहटाएंमुझे सर्जन की नई ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं!
khoob! visit this part of world, layers of clothes will be increased.
जवाब देंहटाएंthank you!
Umdaa abhivyakti... Bahaut badhaayi!
जवाब देंहटाएंवाह! आपके शब्दों ने भी हमें कोहरे की तरह ढक लिया है।
जवाब देंहटाएंदिव्य नर्मदा का आशीष सर-माथे पर!
जवाब देंहटाएं--
यह तो नवगीत की विशेषता है कि वह
कोहरे के समय पत्तियों पर सजे
नन्हे-मुन्ने तुहिन-कणों को
पसीना कहने का समर्थन करती है!
--
सरसों गेहूँ से नहीं रूठी है,
अत: उसे घबराने की आवश्यकता नहीं पड़ी!
वे दोनों तो संयुक्त रूप से कोहरे से त्रस्त और नाराज़ हैं!
आचार्य सचदेव जी ने
जवाब देंहटाएंपूरी तन्मयता और आनंद के साथ पढ़ा
इस नवगीत को!
तभी तो वे अनुभूत कर पाए -
इसकी सुखदाई ऊष्मा!
प्रिय चंदन!
जवाब देंहटाएंमानव द्वारा प्रकृति पर फैलाए गए
कोहरापन को दूर करने की
महत्त्वपूर्ण बात कहकर तुमने
अपनी टिप्पणी को अनमोल बना दिया!
मयंक जी का कहना बिल्कुल सही है!
जवाब देंहटाएं--
मैंने इस नवगीत को रचना उनके घर पर
उनके पास ही बैठकर शुरू किया था!
--
सबसे पहले अंतिम पद रचा गया उनके यहाँ!
उसके बाद पहला और दूसरा पद
अपने घर तक
वापस आते-आते पूरा हो गया!
सच है कि इस नवगीत को रचने की प्रेरणा
जवाब देंहटाएंमुझे "नवगीत की पाठशाला" पर
प्रकाशित नवगीतों से मिली!
--
यह भी सच है कि
पूर्णिमा जी के "उत्प्रेरण" के बिना
यह पूरा होकर आप सबके सम्मुख
नहीं आ पाता!
आज एक और पद रच गया!
जवाब देंहटाएंइसे भी आप सबके सामने लाने में
मुझे प्रसन्नता हो रही है -
भुने हुए आलू की,
गंध बहुत मन-भाती!
चाय-भरे कुल्हड़ से,
गर्माहट मिल जाती!
आँखों ही आँखों में,
बात नई बन जाती!
साँसों से साँसों की,
बात हुई कोहरे में!
* इसे कल रात पढ़ा था। कोहरे में कोहरे के बारे में पढ़ना अनिर्वच होना है।
जवाब देंहटाएं* लय में बँधी पंक्तियों के रचनाकारों के प्रति मेरे मन में बहुत आदर है और मैं इस लयविहीन समय में लयबद्ध रचनाओं को पढ़ने की कोशिश करता हूँ । कुछ इस तरह का उम्दा गढ़ना मेरे लिए सदैव एक असफल प्रयास होता है।
*
बढ़िया रचना।
सोमाद्रि जी की
जवाब देंहटाएंवाह-भरी मुस्कान बता रही है कि
जयपुर में खिली धूप के साथ
कोहरे के एहसास ने उन्हें ख़ूब गुदगुदाया!
--
खटीमा में तो आज
नए साल का सबसे ठंडा दिन रहा!
चैटिंग में उन्होंने यहाँ ख़ूब-सारी धूप भेजी!
सिद्धेश्वर जी का यहाँ आना
जवाब देंहटाएंकोहरे में आ गई
किसी ऊष्म बयार से कम नहीं लगा!
ऐसी टिप्पणी तो केवल वे ही कर सकते हैं!
--
मेरा उनसे विनम्र अनुरोध है -
नवीन बिंबों से सजा अपना एक नवगीत
"नवगीत की पाठशाला" में अवश्य भेजें!
इसमे नवगीत के विधान का निर्वाह तो भलिभाँति हुआ है .. हाँ लय बहुत सुन्दर आ रही है बिम्ब भले ही प्रचलित है.. लेकिन वे अपने नये रूपक में दिखाई दे रहे है ।
जवाब देंहटाएंभुने हुए
जवाब देंहटाएंआलू की, गंध बहुत मन-भाती!
चाय-भरे कुल्हड़ से, गर्माहट मिल जाती!
आँखों ही आँखों में, बात नई बन जाती!
साँसों से
साँसों की, बात हुई कोहरे में!
बहुत सुंदर जी आप की इस कविता ने बहुत कुछ याद दिला दिया. धन्यवाद
रावेन्द्र जी पाठशाला में धमाकेदार एंट्री मारी है आपने। आशा है अगली कार्यशालाओं में भी जुड़े रहेंगे। अच्छा नवगीत है।
जवाब देंहटाएंक्या बात है रावेन्द्र जी, पहली पहली बार आए हैं और सबसे ज्यादा प्रतिक्रियाएँ बटोरे लिए जा रहे हैं...
जवाब देंहटाएं"सुरुचि जी,
जवाब देंहटाएंयह जानकर प्रसन्नता हुई कि
आपने मेरी ऐंट्री को धमाकेदार बना दिया है!
आपकी आशाओं के पुष्प
अवश्य खिलकर महकेंगे!"
बात तो आपकी बात में है, मुक्ता जी!
जवाब देंहटाएंअब तो मुलाकात होती ही रहेगी!
--
--
भाटिया जी की बात से स्पष्ट है कि
यह गीत पढ़कर उन्हें
उस देश की बहुत याद आई,
जिस देश की माटी की महक
इस गीत में महक रही है!
रावेंद्र जी धन्यवाद, जो आपने मुझे याद रखकर ये गीत पढ़ाया,सचमुच बहुत उत्तम, आपने एक बात कहने के लिए कितने अच्छे से उन चीजों का उपयोग किया जो कोहरे में, और इस मौसम में दिखती हैं.
जवाब देंहटाएंऔर आपको बता दूं की इधर भोपाल में कल का तापमान ६ डिग्री था, मज़ा आ रहा है
ओस पसीना वाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंकलियों के
जवाब देंहटाएंखिलने की,आहट भी थमी हुई!
तितली के पंखों की,हरक़त भी रुकी हुई!
मधुमक्खी गुप-चुप है, चिड़िया भी डरी हुई!
-कोहरे से आच्छादित जगत और उसके प्रभावों का सजीव चित्रण. अच्छा लगा इस गीत को गुनगुनाना!!
आपका नवगीत पढकर हमारे आसपास का कोहरा और ज्यादा घना हो गया। काहे इतनी शानदार गीत लिखा भाई, जिससे मुसीबत और बढ गई?
जवाब देंहटाएं--------
थोड़ा अनैतिक ही सही, पर इसके सिवा चारा भी क्या है?
खाने पीने के शौकीन हों, तो यहाँ ट्राई जरूर मारें।
रजनीश भाई, कल शाम ही फ़ोन पर
जवाब देंहटाएंमैं सिद्धेश्वर जी से कह रहा था -
"ऐसा लगता है कि
अब कोहरे पर रचना बंद करना पड़ेगा,
क्योंकि यह तो जाने का नाम ही नहीं ले रहा!"
--
वैसे यह सारी मेहरबानी
"नवगीत की पाठशाला" के
नियंत्रकों की ही अधिक है,
जो गीतकारों से अच्छे-अच्छे गीत
रचवाकर प्रकाशित कर रहे हैं
और विषय-परिवर्तन करने का
नाम ही नहीं ले रहे हैं!
हर मौसम किसी को भाता है..किसी को गुस्सा दे जाता है...कोई रूठ जाता है जैसे सरसों रूठी गेहूँ गुस्साया है....सही कहा है..
जवाब देंहटाएंभुने हुए
आलू की, गंध बहुत मन-भाती!
चाय-भरे कुल्हड़ से, गर्माहट मिल जाती!
इन पंक्तियों से नये ज़माने के बारबीक्यू की याद आ गई.. भूने आलू की गंध...अहाहा...
अच्छा गीत..
दीपिका जोशी'संध्या'
संध्या जी,
जवाब देंहटाएंआप "नवगीत की पाठशाला" पर प्रकाशित
नवगीतों की एक बहुत अच्छी पाठिका हैं!
आपके द्वारा एक साथ सात नवगीतों पर
किए गए उत्साहक कमेंट यह साबित करते हैं!
--
मुझे तब निराशा हुई, जब मुझे
आपके ब्लॉग "मेरी शब्दों की दुनिया" पर
कमेंट करने की सुविधा नहीं मिली!
जाने क्यॊं रूठी सरसों,क्यों गेहूँ गुस्साया
जवाब देंहटाएंदेखॊ सर्दी में भी पत्तों को पसीना है आया
गुपचुप है मधुमक्खी, चिड़िया है भयभीत
कोहरे के परचम ने सब को भरमाया ।
नवगीत की पाठाशाला में स्वागत तथा सुन्दर रचना के लिये बधाई। अगामी गीतों की प्रतीक्षा रहेगी ।
शशि पाधा
बहुत ही सुन्दर नवगीत, बधाई। यहां ’ओस को पसीन” कथन उपमा है, कोई विश्व मान्य सत्य से परे कथन नहीं। कुछ नव गीतकार इस प्रकार की उपमा के स्थान पर रूपक में प्रयोग करते हैं सिर्फ़ नये विन्ब प्रदर्शन के लिये,जो विश्व मान्य सत्य से परे होजाता है, वे ही नवगीत की बदनामी का कारण बनते हैं।
जवाब देंहटाएंपुनः बधाई ।
सरसों कुछ
जवाब देंहटाएंरूठी है, गेहूँ गुस्साया है!
तभी तो पसीना हर,पत्ती पर आया है!
खेतों में सिहरन का,परचम लहराया है!
मौसम पर
ठंडक की, घात हुई कोहरे में!
waah waah bahut hi khoobsurat kavita
कोहरे में
जवाब देंहटाएंभोर हुई, दोपहरी कोहरे में!
कोहरे में शाम हुई,रात हुई कोहरे में!
साँसों से
साँसों की, बात हुई कोहरे में!
Beautiful. The fog could not effect the poem.Instead came in better way.
कोहरे में
जवाब देंहटाएंभोर हुई, दोपहरी कोहरे में!
कोहरे में शाम हुई,रात हुई कोहरे में!
-इस नवगीत में बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है