5 मार्च 2010

१९- रंग से भरे : धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’

रंग से भरे
सुगंध से तरे
दिन ले के आए ऋतुराज रे।

सरसों ने पहनाया फूलों का पीतवस्त्र
परिमल ने दान किये हैं मादक अस्त्र-शस्त्र
कहता जय काम
बौराया आम
सजता है बन वसंत-ताज रे।

महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
मदन सारथी
चला महारथी
जीत लेने जन-गण-मन आज रे।

खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।

कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
धरती अम्बर,
ग्राम, वन, नगर
करते हैं सब इस पर नाज रे।

--
धर्मेन्द्र कुमार सिंहसज्जन

8 टिप्‍पणियां:

  1. "रंग से भरे
    सुगंध से तरे
    दिन ले के आए ऋतुराज रे!
    --
    बहुत सुंदर!"

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  2. महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
    आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
    मदन सारथी
    चला महारथी
    जीत लेने जन-गण-मन आज रे।

    जन-गण-मन का अभिनव प्रयोग भाया. नवगीत रुचा आभार.

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  3. खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
    फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
    बोली होली
    लाओ रोली
    तिलक धरुँ माथे सरताज के।
    sunder bhav
    badhai
    rachana

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  4. खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
    फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
    बोली होली
    लाओ रोली
    तिलक धरुँ माथे सरताज के।

    सुंदर....


    बधाई
    धर्मेन्द्र जी...

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  5. खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
    फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
    बोली होली
    लाओ रोली
    तिलक धरुँ माथे सरताज के।

    कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
    जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
    धरती अम्बर,
    ग्राम, वन, नगर
    करते हैं सब इस पर नाज रे।

    ek our behtarrrn geet padhkar romanchit hua
    badhaee

    जवाब देंहटाएं
  6. sampoorn geet hi naveenta liye huye hai abhinav prayog ke liye badhaee

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  7. धर्मेन्द्र जी, एक बार फिर से एक मनमोहक नवगीत। धन्यवाद ।
    शशि पाधा

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