रंग से भरे
सुगंध से तरे
दिन ले के आए ऋतुराज रे।
सरसों ने पहनाया फूलों का पीतवस्त्र
परिमल ने दान किये हैं मादक अस्त्र-शस्त्र
कहता जय काम
बौराया आम
सजता है बन वसंत-ताज रे।
महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
मदन सारथी
चला महारथी
जीत लेने जन-गण-मन आज रे।
खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।
कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
धरती अम्बर,
ग्राम, वन, नगर
करते हैं सब इस पर नाज रे।
--
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
"रंग से भरे
जवाब देंहटाएंसुगंध से तरे
दिन ले के आए ऋतुराज रे!
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बहुत सुंदर!"
महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
जवाब देंहटाएंआँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
मदन सारथी
चला महारथी
जीत लेने जन-गण-मन आज रे।
जन-गण-मन का अभिनव प्रयोग भाया. नवगीत रुचा आभार.
खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
जवाब देंहटाएंफागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।
sunder bhav
badhai
rachana
खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
जवाब देंहटाएंफागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।
सुंदर....
बधाई
धर्मेन्द्र जी...
खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
जवाब देंहटाएंफागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।
कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
धरती अम्बर,
ग्राम, वन, नगर
करते हैं सब इस पर नाज रे।
ek our behtarrrn geet padhkar romanchit hua
badhaee
sampoorn geet hi naveenta liye huye hai abhinav prayog ke liye badhaee
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी, एक बार फिर से एक मनमोहक नवगीत। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
very nice
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