![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkTluT_425vkIKdnla9dqhKIgcOnGC7nwefJGAxNN5ZL5N2XletBiY3GfLD5Umxs9AAMbYojAigAWSVoWRJNKCUPbIW9A1qkcCXHWJAeosYzo-aa-5Fbn5HdQMs557tGvh1Rq1g1E3R08/s1600/Aatank_NKP.jpg)
बीज अंकुरित होने से घबराये।
कोख में बच्चे को
सिमटा पाया है,
कुछ इस क़दर
आतंक का साया है।
पेड़ों ने तजे पात
लाज उनकी बचाने को,
फूलों ने समेट ली सुगंध
टूटने से बच जाने को।
चिड़ियों को भी यहाँ
फुसफुसाता पाया है
कुछ इस क़दर
आतंक का साया है।
साँझ डरती
धरा पर आने से,
चाँद ने मना किया
गुनगुनाने से।
सूरज अंधेरों से
घबराया है,
कुछ इस क़दर
आतंक का साया है।
--
रचना श्रीवास्तव
पेड़ों ने तजे पात
जवाब देंहटाएंलाज उनकी बचाने को,
फूलों ने समेट ली सुगंध
टूटने से बच जाने को।
चिड़ियों को भी यहाँ
फुसफुसाता पाया है
कुछ इस क़दर
आतंक का साया है।
bahut khoob dar ka chitran bahut achchhe se kiya hai
सुन्दर गीत के लिये रचना जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
आतंक के साये का बहुत अच्छा चित्रण किया है ...अच्छा गीत है
जवाब देंहटाएंजड़ और चेतन दोनों ही भय से कहीं सिमट गये हैं और आतंक का साया सब पर छाया है । बहुत अच्छी रचना है रचना जी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
सब पर आतंक का साया,
जवाब देंहटाएंकुछ इस क़दर छाया है
सूरज अंधेरों से घबराया है,
:
खूब लिखा है, अच्छा है.
डरते आकारों से उनके साये.
जवाब देंहटाएंदेख भवन ऊँचे नीवें घबराएँ.
कंकर से शंकर
डरकर घबराया है.
चंदा को तारों ने
मिलकर धमकाया है.
रचना को रचना से
होती है घबराहट.
गायन से गुम होती
सुर-लय की क्यों चाहत?
वाद्यों का कर्कश स्वर
दस दिश में छाया है.
न्याय प्रशासन शासन
गायब सा पाया है.