जाते जाते चले गए
पर लिख गए एक कहानी
कहीं लिख गए धुआँ आग
कहीं लिख गए पानी
दहशत भरी इबारत लेकर
हवा गयी हर घर में
जाने किसकी नज़र लग गई
फूले फले शहर में
बारूदी दुर्गंध शब्द में
आग उगलती बानी
लहू लुहान हो गए शिवाले
खंडित हुई नमाज़ें
चिड़ियों के जल गए घोंसले
खुशबू किसे नवाज़ें
सन्नाटे में खौफ़ लिखा है
हर यात्रा अनजानी
मेजों पर टँग गए खिलौने
घायल हुए परिंदे
रक्त सनी मुट्ठियाँ उठाए
हँसते रहे दरिंदे
युद्ध भरा आकाश सदी का
बनकर रहा निशानी
--
चन्द्रेश गुप्त
मेजों पर टँग गए खिलौने
जवाब देंहटाएंघायल हुए परिंदे
रक्त सनी मुट्ठियाँ उठाए
हँसते रहे दरिंदे
nihshabd kar diya aapne to...bahut sundar udvelit karti kavita....
सन्नाटे में खौफ़ लिखा है
जवाब देंहटाएंहर यात्रा अनजानी
अद्भुत।
बहुत सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंछलनेवाले, छले गए
जवाब देंहटाएंकह-सुन नित नयी कहानी.
आग लगाते रहे, जले
जब- मिला न उनको पानी....
*
नफरत के खत लिखे अनगिनत
प्रेम संदेश न भेजा.
कली-कुसुम को कुचला लेकिन
काँटा-शूल सहेजा.
याद दिलाई औरों को, अब
याद आ रही नानी....
*
हरियाली के दर पर होती
रेगिस्तानी दस्तक.
खाक उठायें सिर वे जिनका
सत्ता-प्रति नत मस्तक.
जान हथेली पर ले, भू को
पहना चूनर धानी....
*
अपनी फ़िक्र छोड़कर जो
करते हैं चिंता सबकी.
पाते कृपा वही ईश्वर, गुरु,
गोड़, नियति या रब की.
नहीं आँख में, तो काफी
मरने चुल्लू भर पानी....
*****
सारगर्भित गीत. पद के भार तथा भाषा के प्रवाह को साधें.
गीत:
जवाब देंहटाएंमिला न उनको पानी....
संजीव 'सलिल'
*
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*
छलनेवाले, छले गए
कह-सुन नित नयी कहानी.
आग लगाते रहे, जले
जब- मिला न उनको पानी....
*
नफरत के खत लिखे अनगिनत
प्रेम संदेश न भेजा.
कली-कुसुम को कुचला लेकिन
काँटा-शूल सहेजा.
याद दिलाई औरों को, अब
याद आ रही नानी....
*
हरियाली के दर पर होती
रेगिस्तानी दस्तक.
खाक उठायें सिर वे जिनका
सत्ता-प्रति नत मस्तक.
जान हथेली पर ले, भू को
पहना चूनर धानी....
*
अपनी फ़िक्र छोड़कर जो
करते हैं चिंता सबकी.
पाते कृपा वही ईश्वर, गुरु,
गोड़, नियति या रब की.
नहीं आँख में, तो काफी
मरने चुल्लू भर पानी....
*****
सारगर्भित गीत. पद के भार तथा भाषा के प्रवाह को साधें.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com