होली का हर रंग अनोखा।
रंगी हथेली लेकर दौड़े
दूर हुए सब मन के घोड़े,
चली गई मुस्कानें देकर
बोझिल मन पर चले हथौड़े,
साथ रह गया लेखा-जोखा।
भूल गए वो ढाई आखर
पथ में साथ किसी का पाकर,
अनजानी रह गई विरासत
प्रीत हुई बेदम अकुलाकर,
किसके साथ हुआ क्या धोखा।
मौसम ने कर ली मनमानी,
दिशा-दिशा में चादर तानी,
उड़े रंग के बादल नभ में,
भूतल भरा समंदर पानी,
मत करना तुम बंद झरोखा।
-महेश सोनी
भोपाल मध्यप्रदेश
सुंदर गीत, बधाई
जवाब देंहटाएंहोली के बहाने जीवन के सत्य से परिचय करवाता अच्छा नवगीत। सदा सबके झरोखे खुले रहें ताकि रंग के बादल और समुद्र का पानी सबकुछ सदा साफ़ दिखाई दे।
जवाब देंहटाएंभाई महेश सोनी जी संदर नवगीत के लिए बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंबधाई महेश जी, आपकी शिक्षा पसंद आई। होली मनाओ मगर जीवन के लेखे जोखे को मत भूल जाओ। सही है बुद्धि के झरोखे बंद नहीं होने चाहिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर सरस नवगीत...
जवाब देंहटाएंमहेश जी ! बधाई आपको...
महेश जी का गीत मैं पाठशाला में पहली बार देख रही हूँ। पर लगता है कि उनका हाथ नवगीत में मँजा हुआ है। सामाजिक सरोकार भी हैं गीत की लय भी है। जो कुछ कहना चाह रहे हैं वह घुमा फिराकर स्पष्ट होता है साफ साफ होता तो और अच्छा था। पर इस नए सदस्य का हार्दिक स्वागत है। अभिनंदन और बधाई महेश जी !
जवाब देंहटाएंहोली का हर रंग अनोखा
जवाब देंहटाएंमत करना तुम बंद झरोखा
अति संउदर । हार्दिक आभार भाई महेश सोनीजी ।