यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है
चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर
खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है
मुट्ठी भर पेड़ खड़े
खोजें, पहचान कहाँ?
नंगापन ले लेगा
इनकी भी जान यहाँ
सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है
शोर बहा गली सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
रोए मन दूर खड़ा
विरहा की बेला है
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन
(बिलासपुर हिमाचल प्रदेश)
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है
चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर
खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है
मुट्ठी भर पेड़ खड़े
खोजें, पहचान कहाँ?
नंगापन ले लेगा
इनकी भी जान यहाँ
सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है
शोर बहा गली सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
रोए मन दूर खड़ा
विरहा की बेला है
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन
(बिलासपुर हिमाचल प्रदेश)
भाई धर्मेन्द्र जी बहुत सुंदर नवगीत बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंशोर बहा गली सड़क
जवाब देंहटाएंमन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
रोए मन दूर खड़ा
विरहा की बेला है
आह.... पीड़ा मुक्तकंठ से बोल रही है..
सुंदर नवगीत के लियें ..धर्मेन्द्र कुमार जी, आपको बहुत - बहुत बधाई...
सज्जन जी का यह गीत बहुत अच्छा है। आज के सन्दर्भों से सीधा जुडाव और बिल्कुल नये और अछूते प्रतीकात्मक बिम्बों वाली कहन ने इसे अनूठा बना दिया है।साधुवाद उन्हें और नवगीत पाठशाला दोनों को ! कुमार रवीन्द्र
जवाब देंहटाएंनवगीत का प्रारम्भ बहुत अच्छे मुखड़े के साथ हुआ है। धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन जी को उनके इस नवगीत के लिये वधाई।
जवाब देंहटाएं" यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है "
शहरीकरण की विसंगतियों को उजागर करते सफल नवगीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंयंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है
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मुट्ठी भर पेड़ खड़े
खोजें, पहचान कहाँ?
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सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है
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यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
___ सुन्दर पंक्तियाँ .
सार्थक सामायिक नवगीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत बधाई
जवाब देंहटाएंशोर बहा गली सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
रोए मन दूर खड़ा
विरहा की बेला है
rachana
जयकृष्ण राय जी, गीता पंडित जी, जगदीश व्योम जी, उत्तम जी, आचार्य जी एवं रचना जी नवगीत आपको अच्छा लगा इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकुमार रवींद्र जी का आशीर्वाद मिला तो नवगीत का लिखना सफल हुआ। बहुत बहुत शुक्रिया।
शोर बहा गली सड़क
जवाब देंहटाएंमन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
रोए मन दूर खड़ा
विरहा की बेला है
यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला
अति सुंदर प्रवाह भरा नवगीत
शतशः बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद शंभु शरण मंडल जी
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी बहुत सुन्दर य्रर्थाथ भरा नवगीत्।
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