क्यों चले आए यहाँ हम
गाँव अपना छोड़ कर
दूरियाँ तो जगत की थीं
मुट्ठियों में बाँध लीं
शब्द-शिष्टाचार था
संवेदनाएँ बाँट लीं
किन्तु ये जो नागफनियाँ
नफरतों की हैं
दंश धरती
जहर भरती
दहशतों की हैं
कौन इनमें उलझते
दामन बचाएगा
कौन गिरती देह
टूटे तन जुड़ाएगा
प्रश्न मुँह फाड़े खड़े हैं
शहर के हर मोड़ पर
भीड़े के सैलाब हैं
पर आदमी मिलता नहीं
इन घटाओं में नहीं है
प्यार का कतरा कहीं
नाम अपने ही पड़ोसी का
नहीं हम जानते
विश्व मानव प्रेम के
तम्बू हवा में तानते
नाच लो ! गाओ ! हँसो !
रोते रहो सिर फोड़कर
है किसे फुर्सत तुम्हारे पास आए दौड़कर
यह शहर है
गीत मत गाओ यहाँ चौपाल के
घाट गंगा के नहीं हैं
ताल हैं भोपाल के
करने लगी हैं संचरण
कौन जाने
कब कहाँ
तूफान फिर झकझोर कर
जिंदगी रख दे सड़क पर
यों मसलकर तोड़कर
-यतीनद्रनाथ राही
(भोपाल)
गाँव अपना छोड़ कर
दूरियाँ तो जगत की थीं
मुट्ठियों में बाँध लीं
शब्द-शिष्टाचार था
संवेदनाएँ बाँट लीं
किन्तु ये जो नागफनियाँ
नफरतों की हैं
दंश धरती
जहर भरती
दहशतों की हैं
कौन इनमें उलझते
दामन बचाएगा
कौन गिरती देह
टूटे तन जुड़ाएगा
प्रश्न मुँह फाड़े खड़े हैं
शहर के हर मोड़ पर
भीड़े के सैलाब हैं
पर आदमी मिलता नहीं
इन घटाओं में नहीं है
प्यार का कतरा कहीं
नाम अपने ही पड़ोसी का
नहीं हम जानते
विश्व मानव प्रेम के
तम्बू हवा में तानते
नाच लो ! गाओ ! हँसो !
रोते रहो सिर फोड़कर
है किसे फुर्सत तुम्हारे पास आए दौड़कर
यह शहर है
गीत मत गाओ यहाँ चौपाल के
घाट गंगा के नहीं हैं
ताल हैं भोपाल के
वादियों की शांति में
अब कुछ हवाएँ बदचलन
द्वार पिछले खोलकर अब कुछ हवाएँ बदचलन
करने लगी हैं संचरण
कौन जाने
कब कहाँ
तूफान फिर झकझोर कर
जिंदगी रख दे सड़क पर
यों मसलकर तोड़कर
-यतीनद्रनाथ राही
(भोपाल)
बहुत अच्छा, महानगरीय जीवन को पूरी शिद्दत के साथ यतीन्द्रनाथ राही जी का यह नवगीत प्रस्तुत कर रहा है। ये पंक्तियाँ बहुत कुछ सोचने के लिये विवश करती हैं --
जवाब देंहटाएं" नाम अपने ही पड़ोसी का
नहीं हम जानते
विश्व मानव प्रेम के
तम्बू हवा में तानते ..."
वधाई राही जी को श्रेष्ठ नवगीत के लिये।
भाई यतीन्द्र राही का यह गीत महानगर की तमाम विडंबनाओं से जूझते संवेदनशील ग्राम्य मन से हमें रू-ब-रू करता है| गीत का कथ्य एवं कहन तो नवगीत का है, पर इसका कलेवर पारंपरिक गीत से हमें जोड़ता है| इस गीत की, मेरी राय में, यह भी एक उपलब्धि है| कुछ नये एवं अछूते बिम्ब इस गीत में प्रस्तुत हुए हैं| राही जी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इस श्रेष्ठ रचना के लिए|
जवाब देंहटाएंअति श्रेष्ठ नवगीत है ये यतींद्रनाथ जी का। कोटिशः बधाई उन्हें इस नवगीत के लिए।
जवाब देंहटाएंराही जी सचमुच आपका यह नवगीत श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें मानव मन को झकझोरने की पूरी छमता है . बधाई आपको
जवाब देंहटाएंराही जी सचमुच आपका यह नवगीत श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें मानव मन को झकझोरने की पूरी छमता है . बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भावों को समेटे हुए अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना |
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