5 सितंबर 2014

६. लुट रहे जेवर - रामशंकर वर्मा

दिनदहाड़े मेदिनी के
लुट रहे जेवर।
पहरुए खा रहे घेवर।

वल्लरी द्रुम लता पादप
के जड़ाऊ हार
सदानीरा मेखलाओं की
रजत जलधार
सौंप कर पुरखे हमारे
गए अपने घर।

भूख बढ़ती जा रही
सब्जखोरों की
गूँजती चीखें बया
तीतर बटेरों की
बढ़ रहे हैं मौसमों के
धूपिया तेवर।

अजब परकाया प्रवेशी
नटों का छल छद्म
पत्थरों में हो रहे
तब्दील सरवर पद्म
कुटिल सिंहासन करें
इस नीति का फेवर।

- रामशंकर वर्मा

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