ले सीली सी ताप
औ हलकी सी भाप
पावस प्रातः बिखरी पड़ी है
बादल से न बोलूं आज
फिर छितराऊ रश्मि का राज
नग-शिखर पर टिका कर कोहनी
भोर-नवोढा विचर रही है
झील-झील की बूँद-बूँद में
पावस प्रातः निखरी पड़ी है
नील गगन का कोना कोना
पाखी संग बतरस में खोना
नग-शिखर पर सुला कर रोहणी
अरुण-सुषमा छितर रही है
क्षण-क्षण की मोह-माया में
पावस प्रातः पिघली पड़ी है
--स्वाती भालोटिया
बादल से न बोलूं आज
जवाब देंहटाएंफिर छितराऊ रश्मि का राज
नग-शिखर पर टिका कर कोहनी
भोर-नवोढा विचर रही है
kitna sunder chitran hai
saader
rachana
प्रातः काल को बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया, बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविमल कुमार हेडा
वाह दी आपने क्या लिखा है...
जवाब देंहटाएंकसम से जब आपकी रचनाएँ पढता हूँ तो लगता है की यह कभी ख़त्म ना हों...
सच में आपने पावस प्रातः को बिखरा दिया है...
आपका भाई
मीत
नयी नवेली भोर का इतना विविध तथा सजीव चित्रण। बहुत ही सुन्दर कल्पना और अभिव्यक्ति के लिये ढेर सी बधाई स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
नग-शिखर पर टिका कर कोहनी
जवाब देंहटाएंभोर-नवोढा विचर रही है
झील-झील की बूँद-बूँद में
पावस प्रातः निखरी पड़ी है
ye panktiyan bahut sunder
bahut sunder varnan hai
badhai
rachana
पढ़ने के बाद नरम नरम सा महसूस हुआ।
जवाब देंहटाएंशब्द-संयोजन मोहता है।