वो रात फिर आ गई
घनघोर तम
निस्तेज तन
अनुपम छटा
हर ओर छा गई
नेह के मोती पिरोती
वो रात फिर आ गई
बिखरे पड़े
घन केश
घुल रहा
संताप है
प्रेम के नवगीत गाती
वो रात फिर आ गई
अलसित धरा
ताके गगन
बस में नही
चंचल मन
अम्बर धरा के मिलन की
वो रात फिर आ गई
--दीपा जोशी
बहुत ही उम्दा कविता । बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंघनघोर तम
जवाब देंहटाएंनिस्तेज तन
अनुपम छटा
हर ओर छा गई
नेह के मोती पिरोती
वो रात फिर आ गई
एक अच्छी कविता के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
रात्रि का भी इतना बढिया वर्णन .. अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंरात का यह चित्रण इस नवगीत को बहुत सुंदर बना गया...
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें...
मीत
बिखरे पड़े
जवाब देंहटाएंघन केश
घुल रहा
संताप है
प्रेम के नवगीत गाती
वो रात फिर आ गई
khoob likha hai
saader
rachana
दीपा जी ,
जवाब देंहटाएंरात की मनोव्यथा का इतना सुन्दर वर्णन ।
बधाई।
शशि पाधा
बिखरे पड़े
जवाब देंहटाएंघन केश
घुल रहा
संताप है
प्रेम के नवगीत गाती
वो रात फिर आ गई .....
saNtaap ka ghul jana apneaap meiN sukhad hai geet har tarah se achcha laga
बिखरे पड़े
जवाब देंहटाएंघन केश
घुल रहा
संताप है
प्रेम के नवगीत गाती
वो रात फिर आ गई
sunder upmaon aur shabdon ka snyojan hai
bahut sunder
rachana