रोक नहीं सकती हूँ नभ से
सूरज का अवसान कभी
गोधूली की वेला में मैं
साँझ का दीप जलाती हूँ
कोई दुख अमावस जैसा
कभी किसी को घेरे रहता
कभी कहीं कोई आँसू का कण
अँखियों के कोरों से बहता
सरस स्नेहिल गीतों से मैं
सब का धीर बँधाती हूँ
मैं मंगल वाद्य बजाती हूँ
नीले अम्बर की थाली में
तारक दीप जलाता कोई
उल्काओं की फुलझड़ियों से
दिशा-दिशा सजाता कोई
सतरंगी रंगोली से मैं
सब का द्वार सजाती हूँ
मैं ज्योति पर्व मनाती हूँ
सुख सुषमा की बाँधूं गठरी
जग में अलख जगाऊँ आज
अँजली भर-भर बाँटूं खुशियाँ
ले लूँ सारी पीर -विषाद
उदयाचल के शिखरों से मैं
भोर नयी ले आती हूँ
किरणों की लौ बिखराती हूँ
हर साँझ दीप जलाती हूँ
-- शशि पाधा
बहुत अच्छी, प्रवाहमय रचना। भोर नयी ले आती हूँ किरणों की लौ बिखराती हूँ
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है। परन्तु प्रवाह कहीं-कहीं बाधित हो रहा है। मेरे विचार में निम्नवत सुधार इस नवगीत के प्रवाह को सटीक बना सकते हैं।
जवाब देंहटाएंपहले अन्तरे में;
कभी कहीं कोई आँसू-कण
अँखियों के कोरों से बहता।
दूसरे अन्तरे में;
उल्काओं की फुलझड़ियों से
हर इक दिशा सजाता कोई।
अन्तिम लाइन में;
हर सन्ध्या दीप जलाती हूँ।
आशा हैं शशि जी अन्यथा नहीं लेगीं।
aap ka likha geet sada hi sunder hota hai diwali pr aap ka ye geet bahut man bhavan hai
जवाब देंहटाएंbadhai
saader
rachana
नवगीत भाव के स्तर पर बहुत ही सुन्दर है लेकिन जैसा कि सज्जन जी ने कहा प्रवाह में अवरोध है कहीं-कहीं। यदि इस पर भी ध्यान दिया जाता जो निश्चय ही यह एक उत्कृष्ट नवगीत होता।
जवाब देंहटाएंशशिपाधा जी को बधाई!
उदयाचल के शिखरों से मैं
जवाब देंहटाएंभोर नयी ले आती हूँ
गीतकार को अच्छी भावाभिव्यक्ति हेतु साधुवाद..
sanjh ka deep ek sundar abhivykti hai badhai.
जवाब देंहटाएंnaari man ki komal abhivakti..aaj isi tarah ke bhavoN ki jarurat hai jo vykti ko vyakti se jode aur asha ka saNchar kare
जवाब देंहटाएंउदयाचल के शिखरों से मैं
जवाब देंहटाएंभोर नयी ले आती हूँ
किरणों की लौ बिखराती हूँ
Bahut hi sunder panktian ek achoote ahsaas ko jagati hui
Devi nangrani
इस रचना पर अपने विचार देने के लिये मैं आप सभी की आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएंसज्जन जी, आपका सुझाव मान्य है। धन्यवाद। मुझे साँझ शब्द से मोह है अत:
"हर साँझ मैं दीप जलाती हूँ " करने से भी प्रवाह में बाधा नहीं आएगी शायद। पूर्णिमा जी, अगर हो सके तो इतना सा बदल दें ।
शुभकामनाओं सहित,
शशि पाधा