जगत के अज्ञान तम में
दीप अभिनन्दन तुम्हारा...
यदि तिमिर से जूझने का
प्रण लिये हो
ज्योति जल में डूब
अवगाहन किये हो
तो असंख्यक बार है
वन्दन तुम्हारा...
आखिरी दम तक दमन
तम का किया हो
जग किया आलोकमय
न भ्रम दिया हो
तो ॠणी है देश का
कण कण तुम्हारा...
--विपन्नबुद्धि
इस नवगीत का दूसरा बन्द मुझे अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबधाई!
आखिरी दम तक दमन
जवाब देंहटाएंतम का किया हो
जग किया आलोकमय
न भ्रम दिया हो
तो ॠणी है देश का
कण कण तुम्हारा...
सनातन चिन्तक पंक्तियों हेतु अभिवादन. 'देश' के स्थान पर विश्व क्यों नहीं?
deep abhinandan tumhara sandesh pradhan rachna ke liye badhi
जवाब देंहटाएंपूरे गीत का भाव तो सुन्दर है ही किन्तु दूसरा बन्द इस गीत का केन्द्र बिन्दु है। बधाई।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
bahut manbhavan bhav bhasha ka uttam sanyojan
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है विपन्नबुद्धि जी का .... यदि एक बंध और हो जाए तो फिर क्या बात है !
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