जलता दिया
जलाये जिया
पास नहीं जब होते पिया
जलता दिया...
दीवाली की रौनक
करे मन को बेकल
कैसे सँभालूं मैं
उठती जो हलचल,
जब देखूं ये जगमग
तो तड़पे हिया
जलता दिया...
चमकीली लड़ियों ने
है जादू बिखेरा
विरह की घड़ियों ने
मगर मुझको घेरा,
अंगारों सी पल-पल
जले है उमरिया
जलता दिया...
पूछे है मुझसे ये
अनारों का मौसम
ऐसे में होते क्यों
परदेसी हमदम,
फुलझरियां क्या जाने
जो मैंने जिया
जलता दिया...
निर्मल सिद्धू
अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर,सहज और सरल नवगीत
जवाब देंहटाएंsahaj prvah ....फुलझरियां क्या जाने
जवाब देंहटाएंजो मैंने जिया...panktia achchhi lagi