दीप जलें इस बार, जहाँ हो सबसे ज्यादा तम यारों|
जहाँ जल रहे बल्ब, ट्यूबलाइट, झालर और हैलोजन हैं,
वहाँ उपेक्षित सा ही जलता-रहता दीये का तन-मन है,
दीपक फबता, जहाँ रोशनी होती सबसे कम यारों,
दीप जलें इस बार, जहाँ हो सबसे ज्यादा तम यारों|
बेमन से जैरमी करैं जो, उनसे क्या बोलें-बतियाएँ,
हाय, हेलो, हाऊ डू यू डू, बहुत हुई औपचारिकताएँ,
उनसे बाँटो खुशी, जिन्हें हो सबसे ज्यादा गम यारों,
दीप जलें इस बार, जहाँ हो सबसे ज्यादा तम यारों|
गुझिया, पापड़, पूड़ी, सिंवई और कचौड़ी हो आलू की
लड्डू, पेड़ा, बर्फी, पेंठा औ’ खाओ साही-बालू की
उन्हें न भूलो पर जिनको मिलता यह सबसे कम यारों
दीप जलें इस बार, जहाँ हो सबसे ज्यादा तम यारों|
डायनामाइट के ढेरों ने अमन-चैन को आग लगाई
कुछ लोगों के स्वार्थ-घृणा ने, दिल में दीवारें उठवाईं
आओ ये दीवारें तोड़ें, मार पटकुआ-बम यारों,
दीप जलें इस बार, जहाँ हो सबसे ज्यादा तम यारों|
- धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा गीत बधाई
जवाब देंहटाएंYour artical is very fine .i most like.
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