है समय का फेरा,
आतंक ने है घेरा।
चोरी धमार, है बेशुमार,
दुराचार और अत्याचार,
असहाय जनता है लाचार,
छल कपट का डेरा।
सिलसिला बम्ब धमाकों का,
अपहरण और विस्फोटों का,
खून के प्यासे, बहशी दरिंदे ,
स्वार्थी दुश्मन, विषैले फंदे ,
आतंकी साया चहुँ ओर छाया,
लगाया खौफ ने डेरा।
उठ जाग युवक, रणभेरी बजा,
कर दृढ़ संकल्प , पकड़ खडग,
वीरों का कर्तव्य यही ,
पहन क्रान्ति का चोला,
आतंक हो समूल नष्ट,
मिटे आतंकी घेरा।
--
शारदा मोंगा 'एरोमा'
आतंक ने है घेरा।
चोरी धमार, है बेशुमार,
दुराचार और अत्याचार,
असहाय जनता है लाचार,
छल कपट का डेरा।
सिलसिला बम्ब धमाकों का,
अपहरण और विस्फोटों का,
खून के प्यासे, बहशी दरिंदे ,
स्वार्थी दुश्मन, विषैले फंदे ,
आतंकी साया चहुँ ओर छाया,
लगाया खौफ ने डेरा।
उठ जाग युवक, रणभेरी बजा,
कर दृढ़ संकल्प , पकड़ खडग,
वीरों का कर्तव्य यही ,
पहन क्रान्ति का चोला,
आतंक हो समूल नष्ट,
मिटे आतंकी घेरा।
--
शारदा मोंगा 'एरोमा'
badhiya joshili kavita....
जवाब देंहटाएंThanks दिलीप.
जवाब देंहटाएंउठ जाग युवक, रणभेरी बजा,
जवाब देंहटाएंकर दृढ़ संकल्प , पकड़ खडग,
वीरों का कर्तव्य यही ,
पहन क्रान्ति का चोला,
आतंक हो समूल नष्ट,
मिटे आतंकी घेरा।
नई जागृति नया जोश भरती ये पंक्तियाँ, रचना अच्छी लगी
शारदा जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
Thanks Vimalji,
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास किन्तु भाषा के प्रवाह, लय और पदभार को जितना साध सकें, गीत में उतना निखर आएगा.
जवाब देंहटाएंसिमट गया उजियारा.
फ़ैल रहा अंधियारा.
गीत पंक्तियों का विषम भार.
ज्यों लय ने किया अस्वीकार
शासन से जनगण बेज़ार.
लगाता आतंक नित्य फेरा.
अंतरों को जोड़ सके मुखड़ा.
मिट जाये तब सारा दुखड़ा.
विषमता स्वीकार्य नहीं पद में.
अनदेखी सुविधा के मद में.
सत्ता ने खुद को भरमाया,
कालिमामय हो रहा सवेरा.
गीत रच सुगीत मीत गा.
बाँसुरी अमन की फिर बजा.
बहे नेह नर्मदा नदी.
मिटा दे आतंक औ' बदी.
लय-धुन है गीत को अभीष्ट.
भाव का अभाव है घनेरा.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
Thanks Acharyaji,
जवाब देंहटाएंI got the message.
एक अच्छा प्रयास है शारदा जी। जोशीला गीत है आपका । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर,
शशि पाधा
thanks Shashiji.
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