बाज़ों की बस्ती में
धैर्य का कपोत फँसा
गली-गली अट्टहास
कर रहे बहलिए।
तर्कों की गौरेया,
इधर-उधर दौड़ती,
दर्पण से लड़ा-लड़ा
स्वयं चोंच तोड़ती।
आस्थाएँ नीड़ों में
पंख फड़फड़ा रहीं,
आँगन के रिश्ते तक हो
गए दुभाषिए।
संयम का सुआ रोज़,
पिंजड़े से लड़ रहा,
'राम नाम' के पथ पर
इंकलाब जड़ रहा।
किसको है ख़बर,
क्रौंच सच का क्यों मर रहा?
बिना पता घूम रहे
मौसम के डाकिए।
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राधेश्याम बंधु
naye bimbon ne kamal kiya hai aur
जवाब देंहटाएंआँगन के रिश्ते तक हो
गए दुभाषिए। ke dwara rishton ki badhti dooriyon ko kya khoob prastut kiya hai
बहुत सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव लोक में ले जाते हैं आपके बिम्ब और प्रतीक. बाज़, बहेलिये, गौरैया, सुआ इन पक्षियों के माध्यम से मानवीय प्रवृत्तियों और समय की त्रासदी को संकेतित कर पाना आपकी सामर्थ्य का परिचायक है साधुवाद.
जवाब देंहटाएंसाजों की कश्ती से
सुर का संगीत बहा
लहर-लहर चप्पू ले
ताल देते भँवर रे....
थापों की मछलियाँ,
नर्तित हो झूमतीं
नादों-आलापों को
सुन मचलतीं-लूमतीं.
दादुर टरटरा रहे
कच्छप की रास देख-
चक्रवाक चहक रहे
स्तुति सुन सिहर रे....
टन-टन-टन घंटे का
स्वर दिशाएँ नापता.
'नर्मदे हर' घोष गूँज
दस दिश में व्यापता. .
बहते-जलते चिराग
हार नहीं मानते.
ताकत भर तम को पी
डूब हुए अमर रे...
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बहुत अच्छा नवगीत है बन्धु जी। प्रतीक और विम्ब विधान दोनो ही उत्कृष्ट! साधुवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत है ,बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत है ,बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut achchha navgeet he sir.aapke bimb shabda-chitra bun dete hen.
जवाब देंहटाएंbahut sundar sir maapke geet shabda-chitra kheench dete hen.
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