मेघ बजै, हवा चलै
जियरा अगियार जलै
धनुष-गगन, बूँद-तीर
मन्मथ तन रहा चीर
मन होवै अति अधीर
पोर-पोर बढ़ै पीर
सन-सन पछियाँव बहै
बिरही मन आज दहै
सूरज ज्यों गले मिलै
अमवा झुकि झूमि-झूमि
महुआ मुख रहा चूमि
भीग रहे पात-पात
पुलकित हैं उभय गात
झर-झर-झर प्रेम झरै
चरर-मरर जिया करै
देखि-देखि बाँस जरै
--
धर्मेन्द्र कुमार सिंह "सज्जन"
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जवाब देंहटाएंधर्मेंद्र जी ने इस बार अपने नवगीत को
बहुत ही अनूठे अंदाज़ में प्रस्तुत किया है!
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धर्मेन्द्र का विरही मन बहुत सुन्दरता के साथ सामने आया है. अच्छे गीत के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंअमवा झुकि झूमि-झूमि
जवाब देंहटाएंमहुआ मुख रहा चूमि
भीग रहे पात-पात
पुलकित हैं उभय गात
झर-झर-झर प्रेम झरै
चरर-मरर जिया करै
देखि-देखि बाँस जरै
-- dhvani shbdon ne man moh liya
saader
rachana
सार्थक लेखन के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
लोहे की भैंस-नया अविष्कार
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
अमवा झुकि झूमि-झूमि
जवाब देंहटाएंमहुआ मुख रहा चूमि
भीग रहे पात-पात
पुलकित हैं उभय गात
झर-झर-झर प्रेम झरै
चरर-मरर जिया करै
देखि-देखि बाँस जरै
-- वाह वाह वाह । कितना प्यारा है यह शब्दों का सोता ।
purbi hindi ki sugandh liye geet me antim para achchha laga sadhuvaad
जवाब देंहटाएंनवगीत की नई परिभाश्आ रचता हुआ मन कानन को
जवाब देंहटाएंझुमाता हुआ बिल्कुल अनूठे अंदाज के चिर पचिरिाचि
रचनाकार भाई धर्मेन्द्रजी को हार्दिक बधाई
सरस सहज प्रवाहपूर्ण रम्य रचना. साधुवाद.
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