बरखा बिखरी
हुई वियोगिन साँवरी
नाची झन-झनक-झन
बावरी
कोयल कूकी
एक लहर-सी जी में हूकी
कुछ सीधे, कुछ आड़े-टेढ़े, पाँव री
बिखरी लटियां, नयना बिखरे
भाव री
मेघा गरजा
बहुत हिया में ख़ुद को बरजा
भूली पनघट, कुइँयाँ, गलियाँ, गाँव री
पी को मिलने चली, लिए मन
चाव री
रिमझिम बुँदियाँ
भीगा झूलन,भीगा अँचरा,भीगी गुइँयाँ
सुबक सवेरे कागा बोला, काँव री
जागी लगी जिया की, भूली
घाव री
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प्रवीण पंडित
achchi koshish hai,badhai
जवाब देंहटाएंरिमझिम बुँदियाँ
जवाब देंहटाएंभीगा झूलन,भीगा अँचरा,भीगी गुइँयाँ
सुबक सवेरे कागा बोला, काँव री
जागी लगी जिया की, भूली
घाव री
--sunder abhivyakti
badhai
rachana
sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंध्यान दिया जाये-
जवाब देंहटाएं"पावस आवत देखि करि, कोयल साधी मौन,
अब दादुर वक्ता भये हम को पूछत कौन".
क्षमा करें
वर्षा के मौसम में कोयल नहीं, मेंढक टर्राते हैं.
वर्षा में तो 'दादुर मोर पपिहा बोले'
"कोयल कूकी
एक लहर-सी जी में हूकी" से बसंत का आभास
होती है
भूली पनघट, कुइँयाँ, गलियाँ, गाँव री
जवाब देंहटाएं.....
भीगा झूलन,भीगा अँचरा,भीगी गुइँयाँ
सुबक सवेरे कागा बोला, काँव री
सुन्दर पंक्तियाँ,बधाई!
मेघा गरजा
जवाब देंहटाएंबहुत हिया में ख़ुद को बरजा
भूली पनघट, कुइँयाँ, गलियाँ, गाँव री
पी को मिलने चली, लिए मन
चाव री
रिमझिम बुँदियाँ
भीगा झूलन,भीगा अँचरा,भीगी गुइँयाँ
सुबक सवेरे कागा बोला, काँव री
जागी लगी जिया की, भूली
घाव री
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विरह वेदना को इससे संुदर अभिव्यक्ति आज तक “ाायद किसी दी हो
प्रवीणजी इस मरहमजनित पंक्तियों के लिए आपको “ातषः साधुवाद।
बहुत सुंदर नवगीत। बधाई
जवाब देंहटाएंशारदा जी !
जवाब देंहटाएंआपकी बात पूर्णतः उचित है |
जानकारी हेतु आभार |
प्रवीण
अच्छी रचना. त्रुटि की चर्चा हो ही चुकी है, दुहराने से कोई लाभ नहीं.
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