काँपता सा वर्ष नूतन
आ रहा, पग डगमगाएँ
साल जाता है
पुराना सौंप कर घायल दुआएँ
आरती है अधमरी सी
रोज बम की चोट खाकर
मंदिरों के गर्भगृह में
छुप गए भगवान जाकर
काम ने निज पाश डाला
सब युवा बजरंगियों पर
साहसों को
जकड़ बैठीं वृद्ध मंगल कामनाएँ
है प्रगति बंदी विदेशी
बैंक के लॉकर में जाकर
रोज लूटें लाज घोटाले
गरीबी की यहाँ पर
न्याय सोया है समितियों
की सुनहली ओढ़ चादर
दमन के हैं
खेल निर्मम क्रांति हम कैसे जगाएँ
लपट लहराकर उठेगी
बंदिनी इस आग से जब
जलेंगे सब दनुज निर्मम
स्वर्ण लंका गलेगी तब
पर न जाने राम का वह
राज्य फिर से आएगा कब
जब कहेगा
समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ
--धर्मेन्द्र कुमार सिंह
bhut hi sundar abhiyakti.....
जवाब देंहटाएंनव वर्ष नयी आशाओं के साथ ...सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपर न जाने राम का वह
जवाब देंहटाएंराज्य फिर से आएगा कब
जब कहेगा
समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ
बहुत सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति.
सामायिक सन्दर्भों को समाहित करता सार्थक नव गीत...
जवाब देंहटाएंलपट लहराकर उठेगी
जवाब देंहटाएंबंदिनी इस आग से जब
जलेंगे सब दनुज निर्मम
स्वर्ण लंका गलेगी तब
पर न जाने राम का वह
राज्य फिर से आएगा कब
जब कहेगा
समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ
aap ki abhilasha jaroor puri hogi
aap ne ghtnayon ko bahut khoob shbdon me piroya hai
sunder geet
badhai
saader
rachana
पढकर मन अनुभूतियों से भर गया...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव प्रधान नवगीत...
आभार...
बधाई आपको....
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित
रचना पसंद करने के लिए गुणीजनों को धन्यवाद
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