अपनों की
रखवाली करते-करते उम्र तमाम हुई
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई
मन के
सुमन चहकने में है,
अभी बहुत है देर पड़ी
गुलशन
महकाने को कलियाँ
कोसों-मीलों दूर खड़ीं
पवन-बसन्ती
दरवाजों में
आने में नाकाम हुई
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई
चाल-ढाल
है वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये
साल में थे
वैसे ही नये साल में हैं
गुमनामी
के अंधियारों में
खुशहाली परवान हुई
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई
-- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
क्या बात है...बहुत ही सुंदर...नये साल की बधाईया......
जवाब देंहटाएंचाल-ढाल
जवाब देंहटाएंहै वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये
साल में थे
वैसे ही नये साल में हैं
यथार्थ... बस समय बदलता है हालात नहीं...
अच्छी रचना.
अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंचाल-ढाल
जवाब देंहटाएंहै वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये
साल में थे
वैसे ही नये साल में हैं
sach likha vese hi hain bas ab nai tarikh likhenge
bahut sunder likha hai
badhai
saader
rachana
सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंगुमनामी
जवाब देंहटाएंके अंधियारों में
खुशहाली परवान हुई
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई
और शाम हई |
यही है जीवन का संगीत ..
.बहुत सुंदर रचना मयंक जी..
आभार और
ढेर सारी बधाई आपको....
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित