नया वर्ष लेकर आया है
सुंदर नवल प्रभात
आशाओं के पंख उगे हैं
सपनों की बारात
कलरव करती सोन चिरैया
फूल करें अठखेली
रंगों का संसार खिला है
पुरवैया अलबेली
घूँघट पट से नयन झाँकते
बिखराएँ पारिजात
धूप थिरकती तितली जैसी
झुरमुट शरमाया जाता है
भौंरे बाँटें परिणय पाती
सौरभ रस छलका जाता है
अंबर भी सौ-सौ हाथों से
भेजे शुभ सौग़ात
काट निराशा का अंधियारा
नया एक संसार बसाएँ
हिंसा घृणा द्वेष भय त्यागें
स्नेह प्यार का दीप जलाएँ
सबके घर आँगन में बरसे
खुशियों की बरसात
--गिरीशचंद्र श्रीवास्तव
sundar rachna..
जवाब देंहटाएं*काव्य- कल्पना*
फूल करे अठखेली , पुरवैया अलबेली।
जवाब देंहटाएंसुन्दर नव गीत।
सर्व प्रथम आप सभी रचनाकारों को मेरा हार्दिक अभिनंदन...! इस ब्लॉग पर आप सभी की रचनायें पड़कर अत्यंत सुखद और पुलकित अनुभव हुआ..सभी कवियों एवं पाठकों को सहृदय धन्यवाद मेरी हिन्दी भाषा के प्रसार पर ...! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअव्ह्व्ह्हा सन्देश देती
जवाब देंहटाएंअति - मोहक रचना..
आभार और
बधाई आपको....
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित..
अच्छा सन्देश देती
जवाब देंहटाएंअति - मोहक रचना..
आभार और
बधाई आपको....
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित..
सुंदर रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंसरस, मधुर गीत. बधाई.
जवाब देंहटाएंश्री वास्तव में लेकर आया
माथे चन्द्र गिरीश.
मिले सफलता श्रम को
सबका भला कर सकें ईश.
'सलिल'-द्वार पर देख सकें सब
खुशियों की सौगात ...
मुझको यह रचना रुची.
जवाब देंहटाएंश्री वास्तव में मिले, सजे जब सपनों की बारात.
गौरा संग गिरीश प्रमुदित हों, दें खुशियाँ सौगात.
नये वर्ष में हर्ष दसों दिश हो, कवि रचकर नवगीत.
करें भाव अभिव्यक्ति, मीत बन, कितनी सुंदर रीत..
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com