गीत बनें
नवगीत बनें मन
छंदों में मन बुन लायें |
भूल - भुलैया
में खोये मन
को अपनी पहचान मिलें,
शब्द नये हों
नए व्याकरण
अर्थ को अपने मान मिलें,
हर पल बने
बांसुरी ओठों
पर अंतर की धुन लायें |
मन डाली पल
- पाखी चहकें
श्वास के पनघट भर आयें ,
हंस बने मन
नीर क्षीर के
मंथन मन से कर पायें,
नव-वर्ष की
नव बेला में
नेह पगे मन गुन आयें | |
--गीता पंडित
शब्द नये हो, नये व्याकरण,
जवाब देंहटाएंअर्थ को अपने मान मिले।
बहुत सुन्दर बधाई।
भूल - भुलैया
जवाब देंहटाएंमें खोये मन
को अपनी पहचान मिलें,
शब्द नये हों
नए व्याकरण
अर्थ को अपने मान मिलें,
अति सुन्दर, गीता जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
'नवगीत की पाठशाला' की हर पंक्ति अपनी अलग छाप छोड़ती है
जवाब देंहटाएं"॰॰॰॰ शब्द नये हों नए व्याकरण अर्थ को अपने मान मिलें॰॰॰" बहुत शानदार रचना है ॰॰॰गीता जी शुभकामनायें
बहुत सुंदर रचना, बधाई गीता जी
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदय से आभार......
जवाब देंहटाएंऔर नव वर्ष की ढेर सारी बधाई....
गीता पंडित..
वाह... वाह... उत्तम नवगीत.
जवाब देंहटाएंपंडित गीता पढ़े
आचरण भी वैसा ही कर पायें.
जहाँ तिमिर हो
वहीं दीप ले
अपने हाथों धार आयें
हर्ष-खुशी की
रस गागर ले
'सलिल' पिपास बुझाये...
मन डाली पल
जवाब देंहटाएं- पाखी चहकें
श्वास के पनघट भर आयें ,
हंस बने मन
नीर क्षीर के
मंथन मन से कर पायें,
नव-वर्ष की
नव बेला में
नेह पगे मन गुन आयें |
kya kahne bahut sunder
saader
rachana
वाह... वाह...
जवाब देंहटाएंपंडित ने नव गीत रचे, जीवन गीता को पढ़-सुनकर.
दास कबीरा चादर बुनता जैसे सच को गुन-गुनकर.
ह्रदय से आभारी हूँ सभी की...नवगीत के लियें...
जवाब देंहटाएंआभार सलील जी...ऐसे ही स्नेह बना रहे इसी कामना के साथ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की एक बार फिर से शुभ कामनाएँ...
पूर्णिमा दी, आपको और सभी सदस्यों को ढेर सारी बधाई...
जवाब देंहटाएंपत्रिका अपने यौवन की तरफ अग्रसर हो रही है...
प्रार्थना करती हूँ उसका श्रृंगार सभी को और अधिक लुभाने में समर्थ होगा....
शुभ कामनाये.
सस्नेह
गीता पंडित ..