23 जनवरी 2011

२- सड़क पर

चलें रीति से
नीति निभाते
मीत सड़क पर

हौले हौले कदम उठायें
इधर उधर भी नज़र फिरायें
बेमतलब ना दौड़ लगायें
अवरोधक पे
पल भर थम जायें
सोचें फिर रुक कर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

जीवन है मारग जैसा ही
रखवाली की गरज इसे भी
जिसने इसकी अनदेखी की
उसकी हालत
सब जानें, होती
बद से भी बदतर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

दौनों होते नये पुराने
दौनों के सँग लोग सयाने
दौनों 'निविदा' के दीवाने
दौनों सब से
लेते हैं हक से
अपना-अपना 'कर'
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

-नवीन चतुर्वेदी

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर नवीन भाई क्या शानदार गीत लिखा है। बधाई

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  2. जीवन है मारग जैसा ही
    रखवाली की गरज इसे भी
    जिसने इसकी अनदेखी की
    उसकी हालत
    सब जानें, होती
    बद से भी बदतर
    चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर
    bahut hi suder likha hai
    rachana

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  3. जीवन है मारग जैसा ही
    रखवाली की गरज इसे भी
    जिसने इसकी अनदेखी की
    उसकी हालत
    सब जानें, होती
    बद से भी बदतर
    चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर


    सार्थक सन्देश देती सुंदर रचना...
    आभार आपका....

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  4. धर्मेन्द्र भाई और रचना जी आप दोनो का बहुत बहुत आभार सराहना हेतु|

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  5. 'मारग' का प्रयोग रुचा नहीं, यह भाषिक अशुद्धि है जिससे सहज ही बचा जा सकता था. हिंदी में सड़क के अनेक पर्यायवाची हैं, कुछ ४ मात्राओं के भी हैं, फिर मार्ग को तोड़ने की जरूरत क्यों हुई? रचना सारगर्भित तथा पठनीय है.

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  6. आदरणीय आचार्य जी सादर नमस्कार| भाषा को ले कर हालाँकि हम पहले भी बतिया चुके हैं| फिर भी आपकी अनमोल स्लाह का मैं स-सम्मान स्वागत करता हूँ|

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  7. गीता दत्त [शमा] जी बहुत बहुत आभार सराहना के लिए|

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