कृष्णकाय सड़कों पर
सभ्यता चली है
यौवन-जरा में अनबन
भगवा-हरा लड़े हैं
छोटे सड़क से उतरें
यह चाहते बड़े हैं
गति को गले लगाकर
नफरत यहाँ फली है
है भागती अमीरी
सड़कों के मध्य जाकर
है तड़पती गरीबी
पहियों के नीचे आकर
काली इसी लहू से
हर सड़क हर गली है
ओ शंख चक्र धारी
अब तो उतर धरा पर
सब काले रास्तों को
इक बार फिर हरा कर
कब से समय के दिल में
ये लालसा पली है
--धर्मेन्द्र कुमार सिंह
ओ शंख चक्र धारी
जवाब देंहटाएंअब तो उतर धरा पर
सब काले रास्तों को
इक बार फिर हरा कर
कब से समय के दिल में
ये लालसा पली है
संवेदन शील मन की गुहार...मन के हर पथ पर संवेदना भर गयी...
बहुत सुंदर धर्मेन्द्र जी...
आभार आपका....
है भागती अमीरी
जवाब देंहटाएंसड़कों के मध्य जाकर
है तड़पती गरीबी
पहियों के नीचे आकर
काली इसी लहू से
हर सड़क हर गली है
sunder bhav
bahut bahut badhai
saader
rachana
धर्मेन्द्र भाई, दिल में आ रहा है कि हर एक पंक्ति पर कहूँ| क्या बात है बन्धुवर, बहुत खूब| पूरा का पूरा ही नवगीत दिल चीरे डाल रहा है| बधाई स्वीकार करें मित्र|
जवाब देंहटाएंओ शंख चक्र धारी
जवाब देंहटाएंअब तो उतर धरा पर
सब काले रास्तों को
इक बार फिर हरा कर
कब से समय के दिल में
ये लालसा पली है
मन को छूती अभिव्यक्ति... बधाई.
रचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
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