आई होली
धूम मचाओ सा रा रा रा...
होरी की
झुग्गी में चूल्हा
रहे न सूना
अलगू-जुम्मन
दूर न हों तो
हो सुख दूना
जनप्रतिनिधि भी
सहे वेदना
नेता को
इंसान बनाओ सा रा रा रा...
बनें न हम
बाजार महज़
ना माल बिकाऊ
भौजी की
फागों से हों
रसभरे टिकाऊ
पर्व व्यवस्था
स्वस्थ, सेंतना
रंग-अबीर संग
भेद भुलाओ सा रा रा रा...
-आचार्य संजीव 'सलिल'
बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत भाई संजीव सलिल जी बधाई
जवाब देंहटाएंसा रा रा रा
जवाब देंहटाएंवाह आचार्य जी ये मुस्तजाद टाइप [रियली नहीं] टुकड़ा गीत की शोभा में चार चाँद लगा रहा है|
रसभरे टिकाऊ................ओहोहोहो
शब्दों से खेलना नवगीत का अपना एक अलग शिल्प बनाना आपकी विशेषता है आचार्य जी| नमन|
श्री सलिल जी,बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंतनिक इस भी देखें...
मुख पर मलकर लाल गुलाल,
प्रेमरस में भीग बेहाल,
माथे पर टेसू की रोली
लिए संग फूलों की टोली
बसंत चला खेलने होली,
फूल-पत्तों के बंधन वार,
सजाया प्रकृति ने है द्वार,
सरसों का बिछा कालीन,
संगीत-गोष्ठी जमी सब लीन,
पांखी-कवि चिरपिर की बोली...बसंत चला...
आचार्य जी की कलम से निकला एक और नवगीत सीधे गाँव की मिट्टी से। बधाई
जवाब देंहटाएंबने न हम बाजार महल ......................बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसा रा रा रा क्या बात है
बधाई
रचना
आई होली धूम मचाओ स र र र
जवाब देंहटाएंसहज
शैली में भावनाओं की इस अनूठी अभिव्यक्ति के लिए
आचार्यजी को हार्दिक आभार और सादर प्रणाम।
आई होली
जवाब देंहटाएंधूम मचाओ सा रा रा रा...
शर्माता कैलाश
शारदा संग
तुषार है.
है नवीन मंडल
सज्जन पर भी
खुमार है.
रचना में
ठण्डाई घोलना सा रा रा रा...
आई होली
धूम मचाओ सा रा रा रा...
आप सबको धन्यवाद...