मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन।।
कुछ देर डालियों पर ठहरो
पाती पर नाम लिखूँगा
अजनबी हवाओ, सखा साथियों
के तन मन पैठूँगा
धूँ धूँ जल रहे पहाड़ और
भाए भरमाये मन।
मुझसे इस अंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन।।
-कमलेश कुमार दीवान
कुछ देर डालियों पर ठहरो पाती पर नाम लिखूँगा अजनबी हवाओ, सखा साथियों के तन मन पैठूँगा धूँ धूँ जल रहे पहाड़ और भाए भरमाये मन।
जवाब देंहटाएंएक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
अच्छी लगी आपकी रचना . बधाई स्वीकारें - अवनीश सिंह चौहान .
जवाब देंहटाएंकमलेश जी का गीत बढ़िया है पर स्थायी जैसी बहुत सी पंक्तियाँ हैं और अंतरा एक ही है। एक अंतरा और होता तो अच्छा था। फिर भी अच्छा प्रयत्न है।
जवाब देंहटाएंमेरा भी आग्रह है कमलेश जी एक अंतरा और हो जाए।
जवाब देंहटाएं--पूर्णिम वर्मन
ये नवगीत तो पुराना है बहुत पहले पढ़ा था पर इसे नए अंदाज में प्रस्तुत करने के लिए कमलेश जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबसंत पर मंडराते संकट को इतनी साफगोई से और गीतमय अभिव्यक्ति के लिए लाख लाख बधाई दीवान साहब।
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