लाल-गुलाबी बजीं तालियाँ
बरसाने की होली में
बजे नगाड़े ढम-ढम-ढम-ढम
चूड़ी खन-खन, पायल छम-छम
सिर-टोपी पर भँजीं लाठियाँ
ठुमके ग्वाले तक-धिन-तक-धिन
बृजवासिन की सुनें गालियाँ
बृज की मीठी बोली में
मिलें-मिलायें गोरे-काले
मौज उड़ायें देखन वाले
तस्वीरों में जड़ते जायें
मन लहरायें-फगुनायें दिन
प्रेम बहा सब तोड़ जालियाँ
दिलवालों की टोली में
चटक हुआ रंग फुलवारी का
फसलों की हरियल साड़ी का
पक जाने पर भइया, दाने
घर आयेंगे खेतों से बिन
गदरायीं हैं अभी बालियाँ
बैठीं अपनी डोली में
- अवनीश सिंह चौहान
बहुत ख़ूबसूरत होली चित्रण..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअवनीश चौहान जी सुंदर गीत के लिए आपको और नवगीत की पाठशाला को बधाई और होली की रंगभरी शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंब्रज की खूब कही आपने, वहाँ की होली की बात ही निराली है
जवाब देंहटाएंहोली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गीत के लिए अवनीश जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंगदराई सभी बलिया ..........कितना सुंदर मानवीकरण है सुंदर लिखा है भाव भी बहुत ही अच्छे हैं
जवाब देंहटाएंबधाई
लाल गुलाबी बजी तालियां
जवाब देंहटाएंबरसानो की होली में
प्रेम बहा सब तोड़ जालियां
दिलवालों की टोली में
सरल सबोध और सुगेय शाब्दों का ऐसा समाहार विरले ही मिलते हैं और कभी पर मिलते हैं तो भाई अवनीशजी के गीतों में मिलते हैं। हार्दिक बधाई।
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अपने शब्द संयोजन और उद्गारोक्तियों द्वारा सहज ही मंत्र मुग्ध करने में सक्षम उत्कृष्ट कोटि का नवगीत है ये| बधाई अवनीश भाई|
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