6 जून 2011

५. टेसू के फूलों के भारी हैं पाँव

टेसू के फूलों के
भारी हैं पाँव


रूप दिया
प्रभु ने पर गंध नहीं दी
पत्ते भी छीन लिए
धूप ने सभी

सूरज मनमर्जी से
खेल रहा दाँव


मंदिर में
जगह नहीं मस्जिद अनजान
घर बाहर ग्राम नगर
करते अपमान

नहीं मिली छुपने को
पत्ती भर छाँव


औषधि हैं
बट्टे से पिसते ये रोज
फूलों सा इनका मन
भूले सब लोग

जंगल की आग कहें
सभ्य शहर गाँव

-धर्मेन्द्र कुमार सिंह

7 टिप्‍पणियां:

  1. होली पर भी इसका रंग निकालकर होली खेलते हैं!

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  2. धर्मेन्द्र जी बहुत सुंदर कहा है. बधाई.
    परन्तु ...
    नकारें न इतना पलाश.

    वनं पलाश पुरं पलाश,
    स्फुट पराग पंकज,पलाश.
    होली में टेसू का रंग,
    उपवन में छाई उमंग.
    टेसू रंगी गोरी की चोली,
    खिलखिलाती सखियों की टोली.
    टेसू सुमन सोहे पलाश,
    जीवन में आया उल्ल्हास

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  3. bahut khoob...
    sunder navgeet..

    टेसू के फूलों के
    भारी हैं पाँव
    naveen prayog...wah..

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  4. धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी की नवगीत पर बहुत अच्छी पकड़ है, उनका यह नवगीत भी प्रभावित करता है परन्तु पहली ही पंक्ति को पढ़ते हुए एक मुहावरा अवचेतन में घूमने लगता है " पाँव भारी होना " इस मुहावरे का प्रयोग लोक जीवन में स्त्रीलिंग के रूप में ही होता है। " टेसू " के साथ पुल्लिंग का ही प्रयोग होता आया है ------ टेसू के साथ स्त्रीलिंग का प्रयोग कहीं भी देखने को नहीं मिलता है परन्तु यहाँ --

    " टेसू के फूलों के
    भारी हैं पाँव "

    टेसू के फूलों (पुल्लिंग) के पाँव भारी बताने से नवगीत में दोष प्रतीत हो रहा है, मुझे लगता है कि इस दोष को थौड़ा सा परिश्रम करने से दूर किया जा सकता था । फिर भी एक सुन्दर नवगीत के लिए वधाई।

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  5. औषधि हैं
    बट्टे से पिसते ये रोज
    फूलों सा इनका मन
    भूले सब लोग

    जंगल की आग कहें
    सभ्य शहर गाँव
    सुन्दर नवगीत
    rachana

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  6. यह नवगीत दरअसल समाज के उस वर्ग के लिए लिखा है मैंने, जो समाज से त्याग दिया गया है। मगर लोग केवल रंगों के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं। ये वो वर्ग है जो ‘रेड लाइट एरिया’ में रहता है। मगर अफ़सोस इस बात का कि नवगीत पढ़ने से पहली ही बार में ये बात साफ नहीं हुई। इसे मैं इस नवगीत की कमजोरी मानता हूँ।
    रही बात फूलों के पाँव भारी होने की, तो हर फूल के पाँव भारी होते हैं और तभी फल की उत्पत्ति होती है। फूल में अक्सर नर और मादा दोनों ही अंग होते हैं। इसके स्त्री रूप पर रचनाकारों का ध्यान अबतक क्यों नहीं गया यह तो मैं नहीं बता सकता। पर फूल उभयलिंगी होते हैं और इनके लिए मेरे विचार में दोनों में से किसी भी लिंग का प्रयोग हो सकता है। यह नवगीत मैंने थोड़ा सुधार कर भी भेजा था, जो इस प्रकार है।

    टेसू के फूलों के
    भारी हैं पाँव

    रूप दिया
    प्रभु ने पर
    गंध नहीं दी
    पत्ते भी
    छीन लिए
    धूप ने सभी
    सूरज अब मर्जी से
    खेल रहा दाँव

    मंदिर में
    जगह नहीं
    मस्जिद अनजान
    घर बाहर
    ग्राम नगर
    करते अपमान
    नहीं मिली छुपने को
    पत्ती भर छाँव

    रँग अपना
    देने को
    पिसते हैं रोज
    फूलों सा
    इनका मन
    भूले सब लोग
    जंगल की आग कहें
    सभ्य शहर गाँव

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  7. kavita nature ke jitne karib hai utne hi manviy bhi hai, kavita man ko vishesh roop se prabhavit karti hai, kavita ka space kafi vistrit hai.

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