है यही विनती प्रभो
नव वर्ष ऐसा हो
एक डॉलर के बराबर
एक पैसा हो
ऊसरों में धान हो पैदा
रूपया दे पाव भर मैदा
हर नदी को तू रवानी दे
हर कुँआ तालाब पानी दे
लौट आए गाँव शहरों से
हों न शहरी लोग बहरों से
खूब पशुओं हेतु चोकर
और भूसा हो
कैद हो आतंक का दानव
फिर सभी दानव, बनें मानव
ताप धरती का जरा कम हो
रेत की छाती जरा नम हो
घाव सब ओजोन के भर दो
तेल पर ना युद्ध कोई हो
साल ये भगवन! धरा पर
स्वर्ग जैसा हो
सूर्य पर विस्फोट हों धीरे
भूध्रुवों पर चोट हो धीरे
अब कहीं भूकंप ना आएँ
संलयन हम मंद कर पाएँ
अब न श्यामल द्रव्य उलझाएँ
सब समस्याएँ सुलझ जाएँ
चाहता जो भी हृदय ये
ठीक वैसा हो
-- धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बरमाना, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश से
बहुत सुन्दर प्रार्थना
जवाब देंहटाएंएक डॉलर के बराबर
जवाब देंहटाएंएक पैसा हो
ऊसरों में धान हो पैदा
रूपया दे पाव भर मैदा
कैद हो आतंक का दानव
फिर सभी दानव, बनें मानव
कितनी पंक्तियों को पेस्ट करूँ सभी बहुत समयोचित है और हरेक भारतीय या मानव के हृदय की चाहत है...
धर्मेन्द्र कुमार सज्जन जी ! बहुत सुन्दर नवगीत के लिए वधाई। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से सफल नवगीत है। बात कहने का नया ढँग और लयात्मकता का निर्वाह पूरे नवगीत में हुआ है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जगदीश व्योम जी का आशीर्वाद मिला, नवगीत लिखना सफल हो गया। हार्दिक आभार स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंवंदना जी और कुमार नीरज जी नवगीत पसंद करने के लिए आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया।
आज की तमाम चिंताओं से जोड़ते इस प्रार्थना-गीत के लिए धर्मेन्द्र भाई को मेरा हार्दिक अभिनन्दन| ये पंक्तियाँ विशेष रुचीं -
जवाब देंहटाएंऊसरों में धान हो पैदा
रूपया दे पाव भर मैदा
हर नदी को तू रवानी दे
हर कुँआ तालाब पानी दे
लौट आए गाँव शहरों से
हों न शहरी लोग बहरों से
खूब पशुओं हेतु चोकर
और भूसा हो
गीत पर अपना आशीर्वाद देने के लिए कुमार रवींद्र जी का कोटिशः साधुवाद
जवाब देंहटाएंतथास्तु. धर्मेन्द्र जी, बहुत खूब कहा है. ईश्वरेच्छा से आप कथन पूर्ण हो. आपको नव वर्ष शुभ हो.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शारदा जी।
जवाब देंहटाएंयही विनती प्रभो
जवाब देंहटाएंनव वर्ष ऐसा हो
एक डॉलर के बराबर
एक पैसा हो आज के यथार्थ का हू बहू चित्रण बधाई धरमेन्द्र जी को प्रभुदयाल
ऊसरों में धान हो पैदा
जवाब देंहटाएंरूपया दे पाव भर मैदा
हर नदी को तू रवानी दे
हर कुँआ तालाब पानी दे
लौट आए गाँव शहरों से
हों न शहरी लोग बहरों से
खूब पशुओं हेतु चोकर
और भूसा हो
पंक्तियाँ सुंदर भाव लिए ,खूब कहा
अभिनन्दन
rachana
सादर
रचना
प्रभुदयाल जी और रचना हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंgive your contact no pl.prabhudayal
जवाब देंहटाएं