5 दिसंबर 2011

५. नया वर्ष शुभ हो

सिहर-सिहर कर शिशिर कह रहा-
नया वर्ष शुभ हो।।

दस्तक देता समय द्वार पर
जाता पिछला वर्ष हार कर
कहता है पल-पल पुकार कर
नया वर्ष शुभ हो।।

खुले रहें वातायन मति के
हों अवरुद्ध न पाँव प्रगति के
होंवें सहृदय भाव नियति के
नव प्रकर्ष शुभ हो।।

प्रकृति न अधिक प्रकोप दिखाए
तत्व न कोई प्रलय मचाए
मिलें सृजन को नई दिशाएँ
नवोत्कर्ष शुभ हो।।

उजड़े गाँव पुन: बस जाएँ
सहमे पाँव पुन: पथ पाएँ
बिछुड़े मिलें अभीप्सित पाएँ
स्वजन दर्श शुभ हो।।

हो आरोग्य, धन, धान्य आए
सुख समृद्धि नव रंग दिखाए
सपने सुखद सत्य हो जाएँ
प्रिय स्पर्श शुभ हो।।

सिंधु नहीं लांघे मर्यादा
जीवन को न सताए बाधा
रह जाए सत्कार्य न आधा
नवल हर्ष शुभ हो।।

हर अंतर से दूर भ्रांति हो
हर आनन पर नव्य कांति हो
अब न हताहत विश्वशांति हो
नव संघर्ष शुभ हो।।

-प्रो. हरिशंकर आदेश

3 टिप्‍पणियां:

  1. खुले रहें वातायन मति के
    हों अवरुद्ध न पाँव प्रगति के
    होंवें सहृदय भाव नियति के
    नव प्रकर्ष शुभ हो।

    bahut achchha navgeet

    जवाब देंहटाएं
  2. हर अंतर से दूर भ्रांति हो
    हर आनन पर नव्य कांति हो
    अब न हताहत विश्वशांति हो
    नव संघर्ष शुभ हो।।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर नवगीत के लिए हरिशंकर जी को बधाई

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।