शाम वही थी सुबह वही है
नया नया क्या है
दीवारों पर बस कलैंडर
बदला बदला है
उजड़ी गली,
उबलती नाली, कच्चे कच्चे घर
कितना हुआ विकास लिखा है सिर्फ पोस्टर पर
पोखर नायक के चरित्र सा
गंदला गंदला है
दुनिया वही,
वही दुनिया की है दुनियादारी
सुखदुख वही, वही जीवन की, है मारामारी
लूटपाट, चोरी मक्कारी
धोखा घपला है
शाम खुशी
लाया खरीदकर ओढ ओढ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से
हर इक गमला है
-वीरेंद्र जैन
भोपाल से
नवगीत की अभिव्यक्ति कहाँ तक और कैसे फिलवक्त से रू-ब-रू होती है, इस गीत से पता चलता है| साधुवाद है भाई वीरेंद्र जैन को इस सार्थक रचना के लिए!ये पंक्तियाँ इस गीत को विशिष्ट बनाती हैं -
जवाब देंहटाएंउजड़ी गली,
उबलती नाली, कच्चे कच्चे घर
कितना हुआ विकास लिखा है सिर्फ पोस्टर पर
पोखर नायक के चरित्र सा
गंदला गंदला है
कुमार रवीन्द्र
बहुत सुंदर नवगीत है, वीरेंद्र जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंशाम खुशी
जवाब देंहटाएंलाया खरीदकर ओढ ओढ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से
हर इक गमला है
वाह बहुत सही कहा आपने
शाम खुशी
जवाब देंहटाएंलाया खरीदकर ओढ ओढ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से
हर इक गमला हैति सुंदर वर्तमान की सजीव प्रस्तुति प्रभुदयाल
शाम खुशी
जवाब देंहटाएंलाया खरीदकर ओढ ओढ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से
हर इक गमला है अति सुंदर वर्तमान की सजीव प्रस्तुति प्रभुदयाल