अगवानी में यह जग सारा
अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा
गया बरस कुछ छला छला सा
कसमें झूठीं वादे टूटे
आहत जनता, मद में सत्ता
झूठ का परचम सच थे रूठे
नए बरस की नयी सुबह से
लाना तुम सुख का उजियारा
आशंका दैवी प्रकोप की,
और प्रलय की भविष्यवाणियाँ
ज्योतिष विद्या से ऊपर है
'समय' तुम्हारी मेहरबानियाँ
विश्वयुद्ध सा दैत्य विनाशक
पैदा ना हो अब दोबाराI
आज देश को बहुत ज़रूरत
धर्मों का ना हो टकराव
चमन देश का खिल कर महके
मसले सुलझे घटे तनाव
नए वर्ष में बढे निरंतर
जन जन के मन भाईचारा
-संध्या सिंह
लखनऊ से
अगवानी में यह जग सारा
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा
गया बरस कुछ छला छला सा
कसमें झूठीं वादे टूटे
आहत जनता, मद में सत्ता
झूठ का परचम सच थे रूठे
नए बरस की नयी सुबह से
लाना तुम सुख का उजियारा
बहुत ही सुंदर नवगीत है
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आबू रोड
e-mail- trilokthakurela@gmail
अगवानी में यह जग सारा
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा
गया बरस कुछ छला छला सा
कसमें झूठीं वादे टूटे
आहत जनता, मद में सत्ता
झूठ का परचम सच थे रूठे
नए बरस की नयी सुबह से
लाना तुम सुख का उजियारा
बहुत ही सुंदर नवगीत है
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आबू रोड
e-mail- trilokthakurela@gmail
बहुत सुंदर नवगीत है, संध्या जी को बधाई
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, अच्छा प्रयास किया है आपने। यहाँ पर छन्द बदल गया है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंआज देश को बहुत ज़रूरत
धर्मों का ना हो टकराव
चमन देश का खिल कर महके
मसले सुलझे घटे तनाव
नए वर्ष में बढे निरंतर
जन जन के मन भाईचारा
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, अच्छा प्रयास किया है आपने। यहाँ पर छन्द बदल गया है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंआज देश को बहुत ज़रूरत
धर्मों का ना हो टकराव
चमन देश का खिल कर महके
मसले सुलझे घटे तनाव
नए वर्ष में बढे निरंतर
जन जन के मन भाईचारा
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-722:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
त्रिलोक सिंह जी,धर्मेन्द्र जी ,सदा जी ........बहुत बहुत आभार आपका मेरे आत्म बल को बढाने के लिए
जवाब देंहटाएंसन्ध्या जी अच्छा नवगीत बनपड़ा है।
जवाब देंहटाएंPurane varsh ki katutaa se aage badhkar nav varsh ke sundar aur safal abhinandan... bahut badhai aapko Sandhyaji...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भाव सन्ध्या जी ..!
जवाब देंहटाएंसत्ता के मद में चूर राजनेताओं की लापरवाह उपेक्षा से,प्रकृति-काल के उपद्रवों से, युद्ध के विषाद धार्मिक उन्माद से विश्व-भर के जनसमुदाय को सुरक्षित बचाए रखने की मंगल-कामना से परिपूर्ण सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंवाह, कितना सुन्दर वर्णन किया गया है नव वर्ष के आगमन का.....परन्तु साथ में बीत रहे वर्ष को भी भुलाया नहीं गया है.....दैवी प्रकोप, सत्ता मद, टकराव , जितने भी व्यंजक थे इस समय में, सभी को आपने अच्छे ढंग से निरूपित किया है....और साथ में नव वर्ष के आगमन में आशा और विश्वास झलकता है.....अत्यंत सुन्दर और मनभावन रचना....
जवाब देंहटाएंवाह, कितना सुन्दर वर्णन किया गया है नव वर्ष के आगमन का.....परन्तु साथ में बीत रहे वर्ष को भी भुलाया नहीं गया है.....दैवी प्रकोप, सत्ता मद, टकराव , जितने भी व्यंजक थे इस समय में, सभी को आपने अच्छे ढंग से निरूपित किया है....और साथ में नव वर्ष के आगमन में आशा और विश्वास झलकता है.....अत्यंत सुन्दर और मनभावन रचना....
जवाब देंहटाएंडा.व्योम जी ह्रदय से आभारी हूँ गीत का विश्लेषण करने के लिए आपका सुझाव शिरोधार्य ....आगे बेहतर प्रयास करूंगी ...सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंआशंका दैवी प्रकोप की,
जवाब देंहटाएंऔर प्रलय की भविष्यवाणियाँ
ज्योतिष विद्या से ऊपर है
'समय' तुम्हारी मेहरबानियाँ
विश्वयुद्ध सा दैत्य विनाशक
पैदा ना हो अब दोबाराI अति सुंदर भविष्य का सटीक चिंतन प्रभुदयाल